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ऐसे ही हाल रहे तो लुप्त हो जाएगी नर्मदा, 28 सहायक नदियों ने तोड़ा दम, परिक्रमा पथ से पेड़ भी गायब

locationनरसिंहपुरPublished: Jun 04, 2019 10:43:58 pm

Submitted by:

abishankar nagaich

पर्यावरण दिवस पर विशेष, नर्मदा परिक्रमा पथ से पेड़ गायब, दम तोड़ रहीं 28 सहायक नदियां

narmada tributary

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नरसिंहपुर/गाडरवारा. जीवनदायिनी मां नर्मदा के आंचल में बसे इस जिले में फोरलेन और कालोनियों के लिए हजारों वृक्षों की निर्मम हत्या, रेत माफिया द्वारा नदियों का अंधाधुुध दोहन, हानिकारक प्लास्टिक सामग्री का अत्याधिक उपयोग, शहर से लेकर गांव तक बढ़ती वाहनों की संख्या, गर्मी से बचने एसी के बढ़ते उपयोग ने इस पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। पर्यावरण के संरक्षण की जिम्मेदारी का निर्वाह न प्रशासन कर रहा है और न आम नागरिक। परिणामस्वरूप यहां के लोग बढ़ते जल संकट, गर्मियों में असहनीय होते तापमान और स्वच्छ वातावरण की कमी जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

अवैध और मनमाने रेत खनन से 28 सहायक नदियों के अस्तित्व पर गहराया संकट
नर्मदा नदी इस जिले की प्रमुख जीवनदायिनी है पर इसकी ताकत यहां बहने वाली 28 सहायक नदियां हैं जो इसके बहाव में अपना योगदान देती हैं। धमनी, सीतारेवा, शक्कर, शेढ़, माछा, बरांझ, हिरन, सहित अन्य सभी सहायक नदियां रेत खनन की वजह से दम तोड़ चुकी हैं जिसकी वजह से नर्मदा नदी का जलस्तर काफी कम हो गया है। दूसरी ओर नर्मदा में किए जा रहे अवैध खनन की वजह से इसके प्राकृतिक घाट नष्ट हो चुके हैं। नदी की धार में मशीनों की मदद से रेत निकाले जाने की वजह से इसकी प्राकृतिक जलीय जैव विविधता को काफी नुकसान पहुंचा है। रेत माफिया ने कई घाट गहरे गड्ढों मेे तब्दील कर दिए हैं।


काट डाले 25 हजार से ज्यादा वृक्ष,आग उगल रहा मौसम
जिले से होकर दो एनएच 12 और 26 नंबर गुजरते हैं, इन दोनों के निर्माण के लिए सडक़ किनारे स्थित करीब 25 हजार से ज्यादा पेड़ काट डाले गए हैं। 26 नंबर एनएच फोरलेन का हिस्सा है। काटे गए हजारों पेड़ 50 से 100 साल तक पुराने थे। फोरलेन बनाने के दौरान नर्मदा पथ के हजारों पेड़ों की निर्मम हत्या कर दी गई। हालात यह हो गए हैं कि नर्मदा परिक्रमा वासियों को मीलों तक पेड़ों की छांव नहीं मिलती।

नहीं लगाए नए वृक्ष
नियमानुसार रोड के लिए पेड़ काटने के बाद वहां नए पेड़ लगाए जाने थे पर अभी तक उनकी भरपाई नहीं की गई है। जो पेड़ लगाए गए हैं उनमें से ज्यादातर छायादार घने पेड़ नहीं हैं। कई जगह पर वृक्षारोपण की औपचारिकता पूरी की गई है उनकी जगह अब केवल खाली ट्री गार्ड नजर आते हैं। इसी तरह से कालोनियों के लिए खेती की जमीन खरीदकर उसकी प्लाटिंग कर दी गई और खेत की मेढ़ पर लगे पेड़ काट डाले गए। जिसकी वजह से शहरी क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है।

ईंट भ_ों में हर साल सैकड़ों पेड़ों की बलि
शहर और कस्बों के नजदीक बड़ी संख्या में ईंट भ_े संचालित किए जा रहे हैं, ये हरे भरे वृक्षों के दुश्मन साबित हो रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में वृक्षों को झोंका जा रहा है। एनएच 12 राजमार्ग चौराहे से सरसला के बीच पेड़ों का कत्ले आम किया गया है यहां पेड़ों के ठूंठ ही ठूंठ दिखाई पड़ते हैं।


पुराने कुओं में मलबा भरा, दस साल से एक भी नया कुआं नहीं खोदा
खेतों को छोडकऱ गाडरवारा नगर में बीते करीब दस बीस सालों से एक भी नया कुंआ नहीं खोदा गया है। जबकि दूसरी ओर अनेक कुंए कचरे एवं मलबे से भरकर समाप्त कर दिए गए। केवल कुछ गिने चुने प्राचीन कुंए ही लोगों के घरों में स्थित हैं। अनेकों टयूबवेल, बोरवेल, जेटपंप से भूगर्भ से पानी खींचा जा रहा है।


इनका कहना है
किसी भी प्रोजेक्ट के लिए जितनी संख्या में पेड़ काटे जाते हैं उससे दोगुनी संख्या में लगाना आवश्यक होता है, यह जरूरी नहीं कि पौधे उसी स्थान पर लगाए जाएं यदि वहां जगह नहीं तो किसी दूसरे स्थान पर पौधे लगाए जा सकते हैं।
एमआर बघेल, डीएफओ

 

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