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अद्भुत हैं नर्मदा के ये घाट यहां भगवान ने की थी तपस्या

locationनरसिंहपुरPublished: Apr 23, 2019 10:28:11 pm

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abishankar nagaich

नरसिंहपुर जिले में नर्मदा नदी 160.3 किमी का सफर तय करती है, इसके घाटों का विशेष धामिज़्क महत्व है

narmada river

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नरसिंहपुर. मां नर्मदा जिले में रमपुरा दफाई गांव से प्रवेश कर 160.3 किमी की यात्रा कर आगे होशंगाबाद जिले में प्रवेश करती है। जिले में इसके विभिन्न स्थानों के कई तटों का ऐतिहासिक और धामिज़्क महत्व है। कुछ तटों पर भगवान श्रीराम, शिव, ब्रह्मा के अलावा अन्य देवी देवताओं और ऋषि मुनियों ने तपस्या की थी। ये तट नर्मदा के प्राकृतिक और आध्यात्मिक सौंदयज़् का बोध कराते हैं। गमीज़् के दिनों में इन तटों पर लोग रक्त तप्त सूयज़् के ताप से राहत पाने जाते हैं । हम बता रहे हैं इन तटों की खूबियां और इनका महत्व।


सोकलपुर घाट में भगवान शिव ने की थी तपस्या
यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी। इसका प्राचीन नाम शुक्लेश्वर घाट है। पूवज़् तट पर नीलकंठेश्वर का मंदिर है। यहां शक्कर नदी नर्मदा में मिलती है। यहां पंचकोशी परिक्रमा होती है।

रामघाट में भगवान राम ने किया था तप
स्कंद पुराण में वणिज़्त है कि राम घाट में भगवान राम ने रावण का वध करने के बाद तपस्या की थी जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। यहां श्रीहनुमान का प्राचीन दक्षिणमुखी मंदिर है। शिव मंदिर के तहखाने से गांव में स्थित गौंड़ राजाओं के किला तक एक सुरंग बनी है फिलहाल यह रास्ता बंद है।

कीरखेड़ा में अनसुईया ने की थी तपस्या
नमज़्दा पुराण के अनुसार यहां ऐरंडी आश्रम में माता अनसुईया ने तपस्या की थी। यहां पीपल वृक्ष से टिकी हुई श्री हनुमान की मूतिज़् है। यहां कीर जाति के लोग रहते हैं।

शिवानंद महाराज की तपोस्थली है ककराघाट
नर्मदा पुराण में बताया गया है कि ककराघाट शिवानंद महाराज की तपोभूमि है। यहां पारद शिवलिंग की स्थापना है जिस पर श्रीयंत्र उत्कीणज़् है।इसे नागफनी घाट भी कहा जाता है इसके अलावा यहां ककरा महाराज ने तपस्या की थी। टिमरावन घाट में टिमिर ऋषि ने जल समाधि लेकर तपस्या की थी और रिछावर में जामवंत ने तपस्या की थी।

बिल्थारी घाट में बलि ने कराए थे 99 यज्ञ

यह घाट राजा बलि की तपोस्थली है, उन्होंने यहां 99 यज्ञ कराए थे। प्रमाण स्वरूप नर्मदा के बीच कई चबूतरा आज भी नजर आते हैं।

बरमान घाट में ब्रह्मा ने की थी तपस्या
यह मां नर्मदा के सबसे खूबसूरत घाटों में से एक है। दोनों ओर प्राचीन मंदिर हैं तो नदी के बीच स्थित स्वणज़् पवज़्त पर दीपेश्वर महादेव का मंदिर है। कहा जाता है कि यहां बह्मा ने शाप मुक्त होने के लिए अपने आराध्य दीपेश्वर महादेव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया था। मंदिर अत्यंत आकषज़्क एवं मनोहारी है। दो साल पहले यहां श्रीहनुमान की विशाल मूतिज़् बनाई गई है जो काफी दूर से नजर आती है।

ब्रह्म कुंंड में देवताओं ने की थी तपस्या
कहा जाता है कि देवासुर संग्राम के समय यहां देवताओं ने तपस्या कर सिद्धि और शक्ति प्राप्त की थी। ब्रह्म कुंड में एक देव शिला है जहां जप, तप,दान और ब्रह्म भोज का विशेष महत्व है।

सांकल घाट में आदि शंकराचायज़् ने किया था तप
यहां हिरण नदी नमज़्दा में मिलती है। यहां आदि शंकराचायज़् ने तपस्या की थी जिससे इस स्थान का विशेष महत्व है। यहां मकर संक्रांति पर मेला लगता है।

बुध घाट
ब्रह्म कुंड से करीब 3 किमी दूर स्थित इस घाट के बारे में कहा जाता है कि यहां बुध देव ने तपस्या की थी। यहां बुधेश्वर मंदिर है।

घुघरी घाट
इस घाट की विशेषता यह है कि पूरे घाट पत्थरों के बने हैं। यहां मां नर्मदा का मंदिर है और कई देवी देवताओं के चबूतरे बने हैं। प्रत्येेक अमावस्या और पूणिज़्मा को यहां श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।

घाट पिपिरया
यहां भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है जिन्हें मोटे महादेव भी कहा जाता है। बसंत पंचमी पर यहां 7 दिवसीय मेला लगता है। परिक्रमावासी यहां जरूर रुकते हैं।

करहैया घाट
यहां कई प्राचीन मंदिर हैं, यहां स्थित एक प्राचीन बरगद वृक्ष के नीचे श्रीराम जानकी का मनोहारी मंदिर है।यहां का प्राकृतिक सौंदयज़् अद्भुत है।

गरुणपुरी का गरारू घाट
यह गरुण देव की तपोस्थली है, जिसकी वजह से इसका नाम गरुणपुरी हुआ और कालांतर में यह गरारू कहा जाने लगा। यहां श्रीराम जानकी का मंदिर है जो पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।

डोंगरगांव
यह जबलपुर भोपाल नेशनल हाइवे क्रमांक 12 पर स्थित है। यहां नजदीक ही माता हिंगलाज माता का मंदिर और पंचधारा तीथज़्स्थल है और नदी के तट पर दुगाज़् मंदिर है। परिक्रमावासियों के ठहरने के लिए धमज़्शाला भी है।

चिनकी घाट
चिनकी उमरिया घाट में नर्मदा संगमरमरी चट्टानों के बीच से प्रवाहित होती है। इसे लघु भेड़ाघाट भी कहते हैं। यहां का प्राकृतिक सौंदयज़् अद्भुत है। यहां 500 साल पुराना शिव मंदिर है।

मुंआर तट
कहा जाता है कि कभी यहां मयूरेश्वर नाम का राजा राज्य करता था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम मुंआर पड़ा। राजा ने यहां रहने वाले दैत्य भैंसासुर का वध किया था। उसकी अस्थियां मां नर्मदा में प्रवाहित होने से उसे स्वगज़् की प्राप्ति हुई जिसकी वजह से इस घाट को पवित्र माना गया है। यहां मकर संक्रांति पर मेला लगता है।

दुभा घाट
यह नम किनारे बसा एक प्राचीन गांव है। कहा जाता है कि यहां दूध की धारा निकली थी जिसकी वजह से इसका नाम दुभा पड़ा। यहां अगहन पूणिज़्मा से सप्तमी तक मेला लगता है।

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