जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली परमहंसी आश्रम झोतेश्वर में बना श्रीत्रिपुर सुंदरी माई का मंदिर अद्वितीय और साधना सिद्धि का केंद्र है। माई दस महाविद्याओं में षोडषी अवतार हैं। मंदिर की ऊंचाई करीब 225 फीट है। यह मंदिर 17 साल में तैयार हो पाया था। 1965 में इसका निर्माण शुरू हुआ था और 1985 में मंदिर में देव मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। नवरात्र पर यहां बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं।
शंकराचार्य के सहयोगी और पीठ पंडित शास्त्री रविशंकर द्विवेदी ने बताया कि मंदिर का शुरुआती निर्माण कार्य राजस्थान से आए एक कारीगर कासिम दीवाना ने किया था। कासिम ने निर्माण के लिए कोई नक्शा नहीं बनाया था बल्कि उसकी पत्नी उसे जो सुझाव देती थी उसी के अनुरूप निर्माण करता जाता था। किसी कारणवश शिखर की 47 फीट दीवार बनने के बाद उसे उच्चाटन हो गया और वह काम छोड़ कर चला गया।
श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु अभिनव विद्यातीर्थ ने की मदद
मंदिर के रुके काम को आगे बढ़ाने में श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु अभिनव विद्यातीर्थ ने मदद की। उन्होंने निर्माणाधीन मंदिर का अवलोकन करने के बाद चिदंबरम नाम के कारीगर को भेजा जिसने मंदिर का निर्माण पूरा कराया। मंदिर का निर्माण राजस्थानी स्थापत्य शैली में शुरू हुआ और दक्षिण भारत की मंदिर निर्माण शैली में पूरा हुआ।
गीता जयंती पर हुई थी प्राण प्रतिष्ठा
मंदिर में त्रिपुर सुंदरी माई के दिव्य विग्रह की स्थापना अगहन शुक्ल एकादशी के दिन गीता जयंती पर 26 दिसंबर 1982 को हुई। मंदिर की परिक्रमा में 64 योगिनियों की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है। माई के मंदिर का गर्भगृह चांदी के पत्रों से सुसज्जित व अलंकृत है। माई की मूर्ति अत्यंत दिव्य,मनोहारी और चमत्कारी है। शास्त्री रविशंकर द्विवेदी बताते हैं त्रिपुर सुंदरी माई दस महाविद्याओं में षोडषी अवतार हैं।
यहां विराजे हैं दुर्लभ दसभुजी श्रीगणेश
त्रिपुर सुंदरी माई के मंदिर के पीछे बने एक और मंदिर में माई की सेनापति वाराही, मातंगी सहित अन्य देवियों की श्यामवर्ण मूर्तियां हैं यहां आदि गुरु शंकराचार्य की भी मूर्ति है इसके अलावा श्रीगणेश की दसभुजी दुर्लभ मूर्ति है जिनकी गोद में शक्ति का वास दिखाया गया है। यहां कुल 85 मूर्तियां विराजमान हैं। वैसे तो वर्ष भर यहां श्रद्धालु आते हैं पर नवरात्र पर दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। परमहंसी आश्रम में सिद्धेश्वर मंदिर को विशेष सिद्ध स्थान माना जाता है। बताया जाता है कि सघन वन के बीच स्थित यह देव स्थान तपस्वियों की तपोस्थली रही है।
पीतांबरा पीठ दतिया के संस्थापक श्रीस्वामीजी महाराज से किया था परामर्श
शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बताया है कि श्रीत्रिपुर सुंदरी माई की मूर्ति की स्थापना के बारे में पीतांबरा पीठ दतिया के संस्थापक श्रीस्वामीजी महाराज से भी चर्चा की गई थी। उनसे देवी के स्वरूप के बारे में परामर्श लिया गया था। शंकराचार्य ने बताया कि 64 योगिनियों की मूर्तियों की स्थापना को लेकर मूर्तियों के स्वरूप को जानने के लिए काफी प्रयास करना पड़ा था। कई वर्ष पहले नेपाल राज परिवार के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में विशेष आमंत्रण पर वे नेपाल गए थे। जहां राजा के पुस्तकालय से उनके सहयोगी को एक पुस्तक प्राप्त हुई थी जिसमें 64 योगिनियों के रेखा चित्र थे। जिनके आधार पर काले पत्थर से योगिनियों की मूर्तियां तैयार कराई गईं।
वर्जन
त्रिपुर सुंदरी माई राज राजेश्वरी हैं, उनका अस्त्र ईख है, नवरात्र में माई के दर्शन, पूजन अर्चन और जप का विशेष महत्व है। साधकों के अलावा अन्य लोगों को भी इस नवरात्र पर अपने आध्यात्मिक उन्नयन के लिए एकाग्रचित्त व समर्पण भाव से जप तप करना चाहिए।
ब्रह्मचारी अचलानंद, परमहंसी आश्रम मणिदीप धाम