नरसिंहपुरPublished: Jan 02, 2019 05:38:57 pm
ajay khare
नहीं दिख रहा नदियों में स्वच्छता का भाव : नर्मदा सफाई अभियान हुआ औपचारिक
River
गाडरवारा। नदियों को क्षेत्र की जीवनरेखा कहा जाता है। लेकिन जिले समेत तहसील में भी नदियों की सबसे अधिक दुर्दशा देखी जा रही है। नर्मदा की सहायक नदियों से लेकर आस्था की प्रतीक मां नर्मदा के प्रति उदासीनता का भाव स्वच्छता के भाव पर हावी दिखाई देता है। अब से कुछ वर्ष पूर्व जहां सभी सहायक नदियों में साल भर पर्याप्त पानी रहता था। वहीं अब इन दिनों बरसात समाप्त होते ही नदियों की धार टूटने लगती है तथा कुछ ही दिनों में नदी जलहीन हो जाती है। इस बार अल्पवर्षा के चलते सहायक नदियों में वैसे ही कम पानी आया था। उस पर स्टॉप डेम बनाकर जल संग्रहण न करने से दिसंबर में ही नदियां जलहीन होने की आशंका सच साबित हुई। जिसकी बानगी शक्कर, दूधी, सीतारेवा एवं ऊमर नदी में देखी जा सकती है।
शहर से होकर बहने वाली शक्कर नदी की बात करें तो यहां अक्टूबर के महीने में नदी संरक्षण समिति द्वारा बोरियों से स्टॉप डेम बनाकर नदी का पानी रोकने का प्रयास किया जाने की चर्चा जोरों पर थी। लेकिन उसी दौरान विधानसभा चुनाव की गहमागहमी में नदी का मुद्दा खो गया और धीरे धीरे नदी में पानी कम होते होते अब नदी की धार लगभग टूट चुकी है। शहर में शक्कर नदी न केवल नगर के जलस्तर वृद्धि में सहायक होती है। बल्कि शहर की पहचान भी शक्कर नदी से होती रही है। क्योंकि युवक रजनीश चंद्रमोहन को ओशो रजनीश बनने की साक्षी शक्कर नदी रही है। इसी के किनारे रजनीश की प्रथम मृत्युबोध स्थली ओशो लीला आश्रम स्थित है। किसी जमाने में शक्कर नदी की रेत में ही तरबूज खरबूज प्रजाति का फल शक्कर ककड़ी के नाम से मशहूर था। जो कई सालों से नदी में पानी न रहने से देखने भी नहीं मिलता। पहले अनेक लोग साल भर नदी में ही नहाते थे, बच्चे दिनभर जलक्रीड़ा करते थे। महिलाएं नदी किनारे कपड़ा धोने के साथ निस्तार का पानी नदी से भर कर ले जाती थीं। लेकिन अब नदी केवल नाम मात्र को रह गई है उस पर भी नदी के बचे खुचे अस्तित्व को बचाने के शासकीय एवं प्रशासनिक प्रयास न किए जाने से नदी की दिनो ंदिन दुर्दशा हो रही है। शक्कर नदी में अनेक नालियां नाले आकर मिलते हैं। पुल के पास इन्हीं का गंदा पानी नदी में नजर आता है। प्रबुद्ध लोगों का कहना है, नदी से जमकर रेत का दोहन किया गया, नदी को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। शायद इसी के चलते नदी धीरे धीरे नगरवासियों से रूठती जा रही है। ठीक इसी तर्ज पर साईंखेड़ा की दूधी नदी, चीचली की सीतारेवा एवं बारहाबड़ा में ऊमर नदी के हाल देखे जा सकते हैं, यह नदियां भी बुरी तरह बदहाल हो रही हंै।
नर्मदा के तट भी प्रदूषित
मध्यप्रदेश की जीवन रेखा एवं करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक मां नर्मदा को प्रत्येक त्यौहार, अमावस, पूर्णिमा पर आस्था के नाम पर मैला किया जाता है। जिसमें श्रद्धालु नर्मदा तटों पर अगरबत्ती, साबुन, शैंपू, तेल के पाउच फेंक जाते हैं। इसके साथ ही पूजन सामग्री, नारियल के अवशेष, अस्थि विसर्जन के दौरान लोगों के मुंडन कराने पर नदी किनारे पड़े बाल एवं पुराने कपड़े फेंकने से लेकर लोग नर्मदा किनारे निस्तार करने से भी नहीं चूकते। नर्मदा किनारे के ग्रामवासी एवं श्रद्धालु स्नान करने के दौरान अपने वाहनों को भी नर्मदा में ही धोते हैं। वहीं लोग अपने पशुओं को नर्मदा में नहलाते आते हैं।
नर्मदा सफाई अभियान नदारद
बीते महीनों नर्मदा किनारे सफाई अभियान चलाकर नर्मदा को संवारने की एक होड़ सी लगी देखी जा रही थी। जो इन दिनों दिखाई नहीं दे रही, अनेक समितियां तहसील के नर्मदा तटों पर भी प्रत्येक सप्ताह नर्मदा स्वच्छता अभियान चला रही थीं। बरसात के पूर्व से बंद उक्त अभियानों में से एक भी अभियान के बारे में देखा सुना नहीं गया। लोगों का कहना है कि नर्मदा की सफाई से अधिक फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने एवं अखबारों में खबरें छपवाने तक तक ही नर्मदा भक्ति दिखाई देती है। जबकि हकीकत में नर्मदा के हाल नर्मदा तटों पर जाकर आसानी से देखे जा सकते हैं। नई सरकार के गठन के बाद लोगों को नर्मदा संरक्षण की उम्मीद बंधी है। देखने वाली बात रहेगी की नर्मदा के साथ आस्था के नाम पर हो रही मनमानी एवं अवैध उत्खनन रूपी अत्याचार पर किस हद तक रोक लग पाती है।