शिवराज कहते रह गए शंकराचार्य ने कर दिखाया नर्मदा के सांकल घाट में बनवाया आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर
नरसिंहपुरPublished: May 08, 2019 03:24:03 pm
नर्मदा के सांकल घाट में बनवाया आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर, अक्षय तृतीया पर कराई मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा
Shankarachary abuilt the temple of adi shankaracharya in narsinghpur
अजय खरे. नरसिंहपुर। मध्यप्रदेश में आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर ओंकारेश्वर में बनवाने की प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज की घोषणा केवल कागजों तक सीमित रह गई और वे इसे साकार नहीं कर सके । इधर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नर्मदा के सांकल घाट पर आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर बनवा कर अक्षय तृतीया के दिन मंदिर में आदि शंकराचार्य और उनके गुरु गोविंदपादाचार्य की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करा दी। इस धार्मिक कार्यक्रम में देश भर से आचार्य और श्रद्धालु शामिल हुए। गौरतलब है कि शिवराज ने २३ अप्रैल २०१८ को शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास का गठन कर आदि शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित कराने के लिए वृहद कार्यक्रम चलाया था और प्रत्येक जिले में एकात्म यात्रा निकाली थी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नरसिंहपुर के सांकल घाट को आदि शंकराचार्य की तपोस्थली बताते हुए ओंकारेश्वर में मूर्ति स्थापना का विरोध किया था।
अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की मौजूदगी में उनके दैविक मार्गदर्शन में आचार्यों ने शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति रिवाजों के साथ दंड संन्यास की दीक्षा देते हुए गुरु गोविंदपादाचार्य और आदि शंकराचार्य के दिव्य विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने सनातन धर्मी भक्तजनों को उपदेश देते हुए गुरु की महिमा का वर्णन किया और उनके जीवन काल का परिचय दिया। इस अवसर पर विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया। इस प्राण प्रतिष्ठा के यजमान सोमेश्वर परसाई थे। पीठ पंडित रविशंकर शास्त्री के माध्यम से प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का संकल्प वह पूरा हो गया । प्राण प्रतिष्ठा के समय ब्रहा्रचारी सुबुद्धानंद, दण्डी स्वामी अमृतानंद सरस्वती, ब्रह्मचारी अचलानंद, चैतन्यानंद, अनेक ब्रहा्रचारी शिष्य गणों के साथ विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति, पूर्व विधायक सुनील जायसवाल उपस्थित रहे।
सिद्ध क्षेत्र है गुरु गुफा
सांकलघाट के पास ढानाघाट पर यह मंदिर उस सिद्ध क्षेत्र में बनाया गया है जिसके बारे में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज शास्त्रोक्त आधार पर यह प्रमाणित करते रहे हैं कि यहां आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद पादाचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ग्रहण की थी। यहां वह गुरु गुफा अपने प्राकृतिक स्वरूप में अभी भी मौजूद है जिसमें रह कर आदि शंकराचार्य ने कठोर जप तप व साधना की थी। इस स्थान व गुफा की प्रमाणिकता को पुरातत्वविद भी साबित कर चुकेे हैं। यह स्थान धूमगढ़ नीमखेड़ा के अंतर्गत है।
५५ फीट ऊंचा शिखर
मंदिर का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने २८ जनवरी २०१८ को मंदिर के लिए भूमिपूजन किया था। जून माह में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ और महज ११ माह में विशाल मंदिर लगभग बनकर तैयार हो गया है। करीब ४० गुणा ६० वर्ग फीट क्षेत्र में निर्मित मंदिर के शिखर की ऊंचाई ५५ फीट है। मंदिर के सामने ही नर्मदा परिक्रमावासियों के ठहरने और सदाव्रत आदि के लिए अन्नक्षेत्र, भोजनालय का निर्माण कराया गया है। २० कक्षों वाले इस अतिथिग़ृह में २ कक्ष शंकराचार्य महाराज के ठहरने के लिए बनाए गए हैं।
अधूरी रह गई शिवराज सरकार की योजना
एमपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा की स्थापना के लिए कार्य योजना तैयार की थी। इसके लिए सरकार ने 23 अप्रैल 2018 को आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास का गठन किया था। जिसमें देश के प्रमुख धर्म गुरुओं को शामिल किया था। श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य को मुख्यमार्ग दर्शक ने किया था । न्यास की पहली बैठक 23 अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निवास पर हुई थी। जिसमें शंकराचार्य की 108 फीट की प्रतिमा की स्थापना के लिए पूरे प्रदेश से अष्टधातु को एकत्र करने का अभियान चलाया था जिसमें लोगों ने स्वर्ण से लेकर अन्य धातएं दान में दी थीं। दूसरी ओर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने ओंकारेश्वर को आदि शंकराचार्य की तपोभूमि बताने पर अपना विरोध जताया था। शिवराज की नमामि देवी नर्मदे यात्रा के दौरान सांकलघाट में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने उन्हें गुरु गुफा को आदि शंकराचार्य की तपोस्थली बताते हुए यहां मूर्ति स्थापना की बात की थी। शिवराज को इस गुफा के अंदर दर्शन कराए थे व उन्हें व साधना को स्फटिक का शिवलिंग भी भेंट किया था। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बताया था कि आदि शंकराचार्य ने यहां अपने गुरु गोविंद पाादाचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ली थी, गौरतलब है कि ब्रिटिश काल के गजेटियर में भी सांकल घाट को आदि शंकराचार्य की तपोस्थली बताया गया है।
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अत्यंत मनोरम स्थल
नर्मदा किनारे ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह मंदिर आसपास प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, पूर्वाभिमुख मंदिर के दायीं ओर नर्मदा का विशाल आंचल है तो बायीं ओर गुरुगुफा है जहां आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण की थी।