बताया जा रहा है कि कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पतालों को भी इजाजत मिल गई है। ऐसे में लोग सरकारी अस्पताल के स्थान पर निजी अस्पतालों को ज्यादा प्रेफर कर रहे हैं। लिहाजा ऑक्सीजन का संकट इन निजी अस्पतालों में ज्यादा है। निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर की रीफिलिंग कई-कई दिन नहीं हो पा रही है। ऑक्सीजन की मांग में कई गुना बढ़ोत्तरी के चलते बाजार में फिलिंग की दर भी दोगुनी-तिगुनी हो गई है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में आज भी हालात नियंत्रण में बताए जा रहे हैं।
शहर के जाने माने चिकित्सक डॉ. पराग पराडकर के अनुसार मार्च तक उनके अस्पताल को रोजाना 10 ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ती थी। कोरोना काल में यह संख्या बढ़कर 50 तक पहुंच गई है। पहले एक जम्बू सिलेंडर की फिलिंग 1000 रुपये में हो जाती थी, लेकिन अब 3 हजार रुपये देने के बाद भी समय पर फिलिंग नहीं हो रही है। ऑक्सीजन की जमकर कालाबाजारी हो रही है। डॉ. पराडकर के अनुसार जिले के अधिकांश अस्पतालों में ऑक्सीजन कंस्ट्रक्टर मशीनें लगी हैं, लेकिन वे कारगर नहीं हैं। क्योंकि वातावरण की हवा से प्राप्त ऑक्सीजन की शुद्धता सिलेंडर की तुलना में 93 फीसद ही होती है।
बात जिला अस्पताल की करें तो मार्च तक यहां पर सांस लेने में दिक्कत वाले मरीजों के लिए हफ्ते में 10 जम्बू टाइप ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती थी। लेकिन कोरोना काल में रोजाना करीब 30 जम्बो सिलेंडर मंगाने पड़ रहे हैं। यहां सेंट्रल ऑक्सीजन पाइपलाइन बिछने के बाद से लेकर अब तक ऑक्सीजन की खपत 30 गुना तक बढ़ गई है। इस बेतहाशा मांग का असर ये है कि सप्लायर फिलिंग के नाम पर तीन से चार गुना तक वसूल रहे हैं।
प्रदेश शासन के निर्देश पर कोरोना के संभावित मरीजों को देखते हुए जिला अस्पताल में 150 जम्बू टाइप ऑक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता सुनिश्चित हुई। इसके बाद वेंटिलेटर की कमी के मद्देनरज सेंट्रल ऑक्सीजन पाइपलाइन बिछाई गई। इसके तहत पहले चरण में 45 फिर आगे चलकर 120 बिस्तरों को जोड़ा गया। इसके जरिए चौबीसो घंटे गंभीर प्रकृति के कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है।
अस्पताल प्रबंधन के अनुसार वर्तमान में इस सेंट्रलाइज्ड सिस्टम के कारण रोजाना 28 से 30 जम्बो टाइप ऑक्सीजन सिलेंडर की खपत हो रही है। जिसकी फिलिंग नागपुर वाया जबलपुर कराई जाती है। 10 से 12 घंटे में आपूर्ति हो जाती है, जबकि गहन शिशु चिकित्सा इकाई में पहले की तरह की 12 सिलेंडर की खपत हफ्तेभर में हो रही है। इस यूनिट की मांग में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है।