नरसिंहपुरPublished: Jan 09, 2019 12:09:55 pm
ajay khare
बालक जितना नौ माह में मां के गर्भ में सीखता है उतना 90 साल में भी नहीं सीख पाता। उस समय माता के जो भाव, स्वभाव होता है, जो भी क्रियाकलाप होते हैं। उन सब का असर गर्भस्थ बालक पर पड़ता है। इसलिए इसलिए जो घर में बड़ी माताएं हैं उनकी जिम्मेदारी है कि वह उस वधु को सावधान करें। यह विचार मंगलवार को गाडरवारा के शर्मा डेयरी परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस ऋषिकेश से आए हुए स्वामी नित्यानंद गिरी जी महाराज ने व्यक्त किए।
Bhagwat
गाडरवारा। बालक जितना नौ माह में मां के गर्भ में सीखता है उतना 90 साल में भी नहीं सीख पाता। उस समय माता के जो भाव, स्वभाव होता है, जो भी क्रियाकलाप होते हैं। उन सब का असर गर्भस्थ बालक पर पड़ता है। इसलिए माताओं को उस समय बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होती है। जो मां बनने वाली बहन, बेटी है उसको इतना विवेक नहीं होता कि वह उस समय राग, द्वेष, ईष्र्या, भय, कामना, वासना, काम क्रोध लोभ आदि विकारों से दूर रह सके। इसलिए इसलिए जो घर में बड़ी माताएं हैं उनकी जिम्मेदारी है कि वह उस वधु को सावधान करें। यह विचार मंगलवार को गाडरवारा के शर्मा डेयरी परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस ऋषिकेश से आए हुए स्वामी नित्यानंद गिरी जी महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने आगे बताया माताए अपनी बहू बेटी को सत्कर्म, भगवत भक्ति, सत्संग में लगाकर ईष्र्या, राग, द्वेष आदि विकारों से दूर रखें। गर्भावस्था में अच्छा साहित्य पढऩे को दें। प्रतिदिन कुछ न कुछ उसके हाथ से दान कराएं, भगवान की पूजा नाम स्मरण कराएं। ताकि उस के भाव पवित्र रह सकें और गर्भस्थ बालक भगवत भक्त बन सके। हमारे देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं वह सभी गर्भावस्था में ही अच्छी शिक्षा को प्राप्त कर चुके थे। अत: माताओं की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसा आचरण करें जिससे बालक श्रेष्ठ हो। भगवत भक्त, राष्ट्रभक्त, मातृ पितृ भक्त हो। आज देश में सत्पुरुषों, भगवत भक्तों, राष्ट्र भक्तों की बहुत कमी हो रही है। क्योंकि माताएं सावधान नहीं हैं, वह अपने निजी स्वार्थों, अहंकार युक्त स्वभाव के कारण असावधानी वश कभी कभी दुष्ट संतानों को जन्म दे देती हैं। जो उनके लिए, परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए बड़ी घातक सिद्ध होती हैं। जितने भी महापुरुष जन्मे हैं वह माताओं से ही जन्मे हैं। अत: माताएं आज फिर ऐसे श्रेष्ठ पुरुषों, श्रेष्ठ कन्याओं को जन्म दें जो अपने साथ सात सात पीढिय़ों को तार सकती हैं। ध्रुव माता सुनीति के पेट में ही महान भक्त बन गए। उनकी माता सुनीति महान नारी थीं, उसे जब उसकी सौत ने घर से निकलवा दिया। तब भी दुखी नहीं हुईं, भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी, ईष्र्या, राग द्वेष से मुक्त रहीं। उसी के परिणाम से ध्रुव जैसे महापुरुष को जन्म दे सकीं। कथा सुनने प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। साथ ही रोजाना सुबह योग शिविर भी जारी है।