नरसिंहपुरPublished: Mar 06, 2019 12:00:45 pm
ajay khare
प्रशासन की उदासीनता से सिमट रहा, सांईखेड़ा का नरहरियानंद तालाब अतिक्रमण, गंदगी, उपेक्षा का शिकार हुआ ऐतिहासिक सरोवर
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गाडरवारा। संतों की नगरी सांईखेड़ा के बीचों बीच हृदय स्थल में स्थित नरहरियानंद तालाब अब तक प्रशासनिक उपेक्षा एवं राजनीति का शिकार होता रहा है। नगर का प्राचीन नरहरियानंद सरोवर पहले 18 एकड़ में फैला हुआ था। बाद में लोगों ने अतिक्रमण कर इसको दबा लिया। इससे सिमट कर मात्र 11 एकड़ में ही बचा है। इसी मेंं लोगों के घरों के सेप्टिक टैंक का गंदा पानी, नहाने धोने का पानी, मल मूत्र इत्यादि सरोवर में जा रहा है। तालाब किनारे कचरा पड़ा रहता है, जबकि यह तालाब बेहद पुराना होने से ऐतिहासिक महत्व रखता है।
ज्ञात रहे 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती जल, जंगल, जमीन कार्यक्रम के अंतर्गत साईंखेड़ा आई थी। यहां उन्होंने नरहरियानंद सरोवर के बीच में बनी नरहरियानंदजी की समाधि पर जाकर पूजा अर्चन की एवं इस सरोवर को गोद लेकर कहा था, मैं इस तालाब का कायाकल्प कर दूंगी। बाद में उनके मुख्यमंत्री पद से जाने के बाद कुछ नहीं हुआ। कई संगठनों के लोगों, शासकीय कर्मचारी अधिकारियों ने कई बार श्रमदान देकर इस तालाब का जीर्णोद्धार किया। कई संस्थाओं, एवं कार्यालय के लोगों ने चंदा इक_ा करके भी इसको संवारने का प्रयास किया। लेकिन स्थानीय प्रशासन ने मात्र जेसीबी चलाकर एवं कचरा निकाल कर औपचारिकता ही निभाई है। दादा धूनी वालों के अनुयायी संत भैया जी सरकार भी इस तालाब के सौंदर्यीकरण के पक्ष में हमेशा रहे। बीते कुछ वर्ष पूर्व शिवरात्रि के पर्व पर उन्होंने लोगों से आग्रह भी किया था कि इस तालाब को स्वच्छ एवं साफ करें। इसके तहत सरकार ने लोगों से तालाब के जीर्णाेद्धार के लिए चंदा भी किया, जो अभी जमा है।
एक समय इस तालाब में कमल के फूलों के लिए प्रसिद्ध था। तालाब में बड़े कमल के फूल खिलते था जो प्रदेश में विख्यात थे। इस तालाब में सिंघाड़े की खेती भी होती है। पहले इस तालाब का पानी घर के उपयोग में लिया जाता था। लेकिन नगर परिषद की उदासीनता के कारण इतना बड़ा तालाब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। लोगों का कहना है यही तालाब अगर अन्य शहर में होता तो इस तालाब को वहां की स्थानीय प्रशासन एक पर्यटक स्थल बनाकर कई गुना पैसे कमाती।