script17 साल लगे थे त्रिपुर सुंदरी माई के मंदिर निर्माण में | the tripur sundari temple was built in 17 years | Patrika News

17 साल लगे थे त्रिपुर सुंदरी माई के मंदिर निर्माण में

locationनरसिंहपुरPublished: Jan 02, 2019 06:13:29 pm

Submitted by:

ajay khare

अनूठा है जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली परमहंसी आश्रम झोतेश्वर में स्थित त्रिपुर सुंदरी माई का मंदिर

अनूठा है जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली परमहंसी आश्रम झोतेश्वर में स्थित त्रिपुर सुंदरी माई का मंदिर

tripur sundari mandir narsinghpur

नरसिंहपुर। जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली परमहंसी आश्रम झोतेश्वर में बना त्रिपुर सुंदरी माई का मंदिर अनूठा और अद्वितीय है। करीब 225 फीट ऊंचे यह मंदिर के निर्माण में 17 साल लगे थे। 1965 में इसका निर्माण शुरू हुआ था और 1985 में मंदिर में देव मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी।
मुस्लिम कारीगर ने किया था मंदिर का शुरुआती कार्य
शंकराचार्य के सहयोगी और पीठ पंडित शास्त्री रविशंकर द्विवेदी ने बताया मंदिर का शुरुआती निर्माण कार्य राजस्थान से आए एक कारीगर कासिम दीवाना ने किया था। कासिम ने कोई नक्शा नहीं बनाया था बल्कि उसकी पत्नी उसे जो सुझाव देती थी उसी के अनुरूप निर्माण करता जाता था। आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब कासिम ने पहली बार शंकराचार्य की तस्वीर देखी तो उसने कहा कि वे उन्हें तीन दिन से स्वप्न में देख रहे थे। कुछ समय तक कार्य करने के बाद अचानक एक दिन कासिम को उच्चाटन हो गया और वह रातोंरात काम छोड़ कर चला गया। तब तक शिखर की दीवार 47 फीट तक बन चुकी थी।
श्रंगेरी के शंकराचार्य ने की थी मदद

इस स्थिति में श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य जगदगुरु अभिनव विद्यातीर्थ ने मंदिर का निर्माण पूरा कराने में मदद की। वे नागपुर से होते हुए इलाहाबाद की यात्रा पर थे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के अनुरोध पर शंकराचार्य अभिनव विद्यातीर्थ सिवनी, धूमा होते हुए परमहंसी आश्रम आए और यहां अवलोकन करने के बाद चिदंबरम नाम के कारीगर को भेजा जिसने मंदिर का निर्माण पूरा कराया। मंदिर का निर्माण राजस्थानी स्थापत्य शैली में शुरू हुआ और दक्षिण भारत की मंदिर निर्माण शैली में पूरा हुआ।

गीता जयंती पर हुई स्थापना

मंदिर में त्रिपुर सुंदरी माई के दिव्य विग्रह की स्थापना अगहन शुक्ल एकादशी के दिन गीता जयंती पर 26 दिसंबर 1982 को हुई। मंदिर की परिक्रमा में 64 योगिनियों की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है। माई के मंदिर का गर्भगृह चांदी के पत्रों से सुसज्जित व अलंकृत है। माई की मूर्ति अत्यंत दिव्य,मनोहारी और चमत्कारी है। शास्त्री रविशंकर द्विवेदी बताते हैं त्रिपुर सुंदरी माई दस महाविद्याओं में षोडषी अवतार हैं। त्रिपुर सुंदरी माई के मंदिर के पीछे बने एक और मंदिर में माई की सेनापति वाराही, मातंगी सहित अन्य देवियों की श्यामवर्ण मूर्तियां हैं यहां आदि गुरु शंकराचार्य की भी मूर्ति है इसके अलावा श्रीगणेश की दसभुजी दुर्लभ मूर्ति है जिनकी गोद में शक्ति का वास दिखाया गया है। यहां कुल 85 मूर्तियां विराजमान हैं। वैसे तो वर्ष भर यहां श्रद्धालु आते हंै पर नवरात्र पर दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। परमहंसी आश्रम में सिद्धेश्वर मंदिर को विशेष सिद्ध स्थान माना जाता है। बताया जाता है कि सघन वन के बीच स्थित यह देव स्थान तपस्वियों की तपोस्थली रही है। यहां सिद्ध बाबा का स्थान है जहां लोग पताका और खड़ाऊं अर्पित करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे कई साधकों को दर्शन भी दे चुके हैं।
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