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याद आएंगी अम्मा, जानिए जयललिता के वे फैसले जिनसे जीता लोगों का दिल

Published: Dec 06, 2016 08:40:00 am

गरीबों को भरपेट सस्ता खाना उपलब्ध करवाना और शराबबंदी जैसे निर्णयों ने उन्हें लोगों के दिलों में पुख्ता जगह बनाने का मौका दिया।

जयललिता एक मास लीडर बनीं। उनके समर्थकों का समूह हर दौर में उनके साथ बना रहा। जबकि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है।

जयललिता की जनप्रियता राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से जुड़े कई मिथक तोडऩे वाली है। गरीबों को भरपेट सस्ता खाना उपलब्ध करवाना और शराबबंदी जैसे निर्णयों ने उन्हें लोगों के दिलों में पुख्ता जगह बनाने का मौका दिया। साथ ही महिलाओं की समस्याओं और सुरक्षा को लेकर भी जयललिता ने कई संवेदनशील निर्णय किए। 
वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए ‘क्रैडल बेबी स्कीम’ शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इस स्कीम को बहुत सराहा गया। उनकी सरकार ने 1992 में ही राज्य में ऐसे पुलिस थाने भी खोले जहां केवल महिलाएं ही तैनात थीं। 
लड़कियों को शादी से पहले सरकार की ओर से दिए जाने वाले चार ग्राम सोने को बढ़ाकर आठ ग्राम करना भी उनकी जनप्रिय स्कीम रही। महिलाओं के लिए जरूरत की चीजें मुफ्त मुहैया करवाने की नीति ने भी उन्हें लोकप्रिय बनाया। क्योंकि ये सुविधाएं महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारने में बहुत मददगार साबित हुईं। 
बतौर मुख्यमंत्री जयललिता ने नवजात बच्चे और मां के लिए एक स्कीम, ‘अम्मा बेबी किट’ भी शुरू की। अम्मा बेबी किट में बच्चे के लिए कपड़े, मच्छरदानी, साबुन, शैम्पू और खिलौनों जैसी कुल 16 चीजें शामिल थीं। 
यह किट बच्चों को जन्म देनेवाली महिलाओं को दिया गया। यह योजना इतनी लोकप्रिय साबित हुई कि महिला वर्ग उनका बड़ा प्रशंसक बन गया। सस्ता भोजन दिए जाने की उनकी ‘अम्मा कैंटीन’ योजना को तो आम लोगों का इतना समर्थन मिला कि विपक्ष के पास भी इसके लिए कोई जवाब नहीं था। 
2001 में दोबारा सत्ता में आने के बाद भी उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगाने, हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकालने, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगाने, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज करने, बस किराया बढ़ाने और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा देने जैसे सख्त निर्णय भी लिए। जिन्हें अधिकतर लोगों ने पसंद किया। ऐसे कई निर्णयों की वजह से लोगों के बीच उनकी जगह बनती गई। 
हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद उन्होंने फिर पशुबलि की अनुमति और किसानों को मुफ्त बिजली देनी पड़ी। बीस किलो चावल दिए जाने के फैसले पर तो उनकी आलोचना भी हुई। बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने गरीबों की नब्ज को मजबूती से पकड़ लिया था तथा उनके लिए कई योजनाएं भी शुरू की। 
जयललिता एक मास लीडर बनीं। उनके समर्थकों का समूह हर दौर में उनके साथ बना रहा। गौरतलब है कि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा कम ही होता है जब किसी राजनीतिक व्यक्तित्व को लाखों लोग यूं पसंद करेंं और उसके हर निर्णय में साथ खड़े नजर आते हैं।
हालांकि उन पर सनकी और मूडी होने का ठप्पा भी लगा। उन्हें तुनुकमिजाज, अस्थिर और अक्खड़ मानने वाले लोग भी स्वीकार करते हैं कि वे बहुत मज़बूत नेता रही हैं, जिनको जनता ने असीम प्रेम और सम्मान दिया। देश की राजनीति के इतिहास में कामयाब महिला राजनेताओं में अधिकांश वे ही नाम आते हैं, जिनका किसी न किसी सियासी घराने से ताल्लुक रहा है। 
किसी भी आम परिवार की महिला का राजनीति में आना और स्थान बनाना मुश्किल है। ऐसे में अम्मा के रूप में ख्याति और जनमानस के मन में स्थान पाना और सशक्त राजनेता बनना जयललिता की एक बड़ी उपलब्धि रही। भारत की राजनीतिक पार्टियों में महिलाओं को सहयोगी कार्यकर्ता के तौर पर ही देखा जाता है। 
ऐसे में अम्मा के कड़े तेवर और सधे निर्णय एक नई इबारत कहे जा सकते हैं। जयललिता ने कई बार सफलता का परचम लहराकर यह साबित किया कि महिला राजनेता भी ना केवल अपनी सत्ता को कायम रख सकती हैं, बल्कि अच्छी रणनीतिकार भी हो सकती हैं। जयललिता की जीवनी ‘अम्मा जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वींन’ लिखने वाली वासंती कहती हैं, यह उनकी बड़ी ताकत थी कि वे बहुत मज़बूत नेता बनीं रहीं। 
उनका पार्टी पर बहुत मज़बूत नियंत्रण रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति में एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता का आभामंडल ओजपूर्ण रहा। असल में देखा जाए तो जयललिता ने जमीन से जुड़े हालातों को देखते हुए ही गरीबों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। 
इन योजनाओं ने ना केवल उनके लिए वोट बैंक साधा बल्कि आम लोगों की भावनाओं को भी उनके साथ गहराई और संवेदनशीलता से जोड़ा।

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