कारगर साबित हुआ नया सिस्टम सूत्रों ने बताया कि पिछले कई मौके पर देखा गया कि सटीक खुफिया इनपुट्स के आधार पर पुलिस या सेना जब आतंककारियों को पकडऩे जाती, तो वे चकमा देकर घरों में छुप जाते थे। ऐसे में तलाशी अभियान लंबा खिंचता और फिर हिंसक भीड़ और पत्थरबाज भारतीय सुरक्षाबलों के मिशन में मुश्किल खड़ी करने लगते थे। ऐसे में सेना ने दीवारों के पार देखने वाले इन रडार का कुछ जगहों पर इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है और ये काफी कारगार भी साबित हुए है।
यूं करता है सिस्टम काम -रक्षा अनुंसधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) के पूर्व निदेशक (पब्लिक इंटरफेस) रवि गुप्ता के अनुसार ये रडार माइक्रोवेव रेडिएशन पर काम करते हैं। -इन माइक्रोवेव तरंगों की मदद से इंसानों के शरीर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों में छोटे बदलावों का भी पता चल जाता है।
-राडार पर उभरने वाले संकेत सेना को छुपे हुए आतंककारियों की जगह और उनकी गतिविधियों का तुरंत पता बता देते हैं। मुंबई हमलों के बाद जरूरत महसूस वर्ष 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमलों के बाद इन रडारों की जरूरत महसूस की गई थी। इस हमले के दौरान आतंकी ताज महल होटल के कमरों में छिपे थे और उनकी तलाश में कमांडोज को काफी मुश्किल और नुकसान का सामना करना पड़ा था।