कोर्ट ने कहा कि, ऐसा करने के लिए आबकारी विभाग को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी लेनी होगी। शराब को इस तरह नष्ट करने के चलते आबकारी विभाग ने बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में नहीं डालना चाहिए। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार की खंडपीठ ने निर्देश दिया था।
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कोर्ट दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी- पहली ढल फूड्स एंड बेवरेजेज के मालिक विक्रमजीतसिंह ढल और दूसरी प्रतीक पोपट की ओर से दी गई याचिका। ढल की विदेशी शराब को राज्य के आबकारी अधिकारियों ने कथित अनियमितताओं के कारण जब्त कर लिया था। वहीं पोपट के पास एक परिसर था और वह अपने परिसर को सील करने की मांग कर रहा था। सुनवाई के दौरान, ढल ने अदालत को बताया कि उसे अब शराब में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि जब्ती तीन साल से अधिक पुरानी थी और ज्यादातर सीमित शेल्फ लाइफ के साथ बीयर और वाइन शामिल थी।
कोर्ट ने बड़ी मात्रा में शराब पर चिंता जताते हुए विभाग से इसे नष्ट करने की प्रक्रिया के बारे में जानना चाहा। अदालत को वर्ष 1953 की एक अधिसूचना दिखाई गई थी, जिसमें दिखाया गया था कि निपटान प्रक्रिया का हिस्सा नीलामी द्वारा किया गया था।
कोर्ट उस प्रक्रिया से सहमत नहीं थी और कहा कि नियमों में केवल यह कहा गया है कि विदेशी शराब को नष्ट करना होगा। ***** अदालत ने विभाग से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वे उचित प्रक्रिया का पालन करें।
कोर्ट उस प्रक्रिया से सहमत नहीं थी और कहा कि नियमों में केवल यह कहा गया है कि विदेशी शराब को नष्ट करना होगा। ***** अदालत ने विभाग से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वे उचित प्रक्रिया का पालन करें।
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