प्रशिक्षण के बाद इनको चौबीस घंटे अलर्ट पर रखा जाता था। 1962 से वर्ष 2004 तक यह गुरिल्ला फोर्स बॉर्डर पर अपना काम करती रही लेकिन 2004 में केन्द्र सरकार ने इस फोर्स में ओपन भर्ती शुरू कर दी और आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति कर दी। गुरिल्ला फोर्स से बाहर हो गए और इनको सरकार की ओर से कोई लाभ नहीं मिला।
देशभर के गुरिल्लाओं ने दिल्ली में धरना-प्रदर्शन किया लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। जबकि मणिपुर में गुरिल्लाओं को कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने सभी लाभ दे दिए। अन्य राज्यों के गुरिल्ला आज भी अपने हक के लिए धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर हैं।
दी जाती थी ट्रेनिंग पूर्व गुरिल्ला राजेन्द्र चौधरी, हरिराम, रणवीर सिंह व साहबराम नायक आदि ने बताया कि उस समय उनको 45 दिन की ट्रेनिंग दी जाती थी, जिसमें एलएमजी, ग्रेनेड व लाइट गन आदि चलाना सिखाया जाता था। जिससे जरुरत पडऩे पर गुरिल्ला छापा मार युद्ध कर बॉर्डर पर आने वाले दुश्मन को खदेड़ सके और बॉर्डर की सुरक्षा कर सके। यह गुरिल्ला फोर्स 17 राज्यों में थी।
प्रदेश में 3 हजार, श्रीगंगानगर में 1200 पूर्व गुरिल्ला उन्होंने बताया कि राजस्थान की सीमा से लगे गांवों में करीब तीन हजार पूर्व गुरिल्ला हैं। इनमें से श्रीगंगानगर जिले में पाक सीमा बॉर्डर से लगते गांवों में करीब बारह सौ गुरिल्ला लगे थे। जो आज अपने हक के लिए करीब ग्यारह साल से भटक रहे हैं।
यह करते थे कार्य पूर्व गुरिल्लाओं का कहना है कि वे बॉर्डर पर ग्रामीणों को ट्रेनिंग देते थे। दुश्मन की हर गतिविधि की सूचना अधिकारियों को देते थे। इसके अलावा घुसपैठ की जानकारी जुटाते थे।
सेना का सहयोग पूर्व गुरिल्लाओं ने बताया कि 1971 में पाक से लड़ाई के दौरान गुरिल्लाओं ने सेना की मदद की थी ।