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उन्होंने मीडिया ट्रायल की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि वे मामलों के निर्धारण में प्रेरक तत्च नहीं हो सकते हैं। न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसके कामकाज को जो सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है वह मीडिया ट्रायल के बढ़ते मामले हैं। नए मीडिया माध्यमों के पास चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने की क्षमता है लेकिन वे सही और गलत ,अच्छे या बुरे, वास्तविक या फर्जी के बीच अंतर करने में अक्षम प्रतीत होते हैं। किसी भी तरह के मामलों के निर्धारण में मीडिया ट्रायल कोई प्रेरक बल नहीं हो सकता है।
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उन्होंने कहा, इस तरह की बातों को दोहराना अब एक फैशन सा हो गया कि न्यायाधीश खुद ही न्यायाधीशों की नियुक्तियां कर रहे हैं और मेरा मानना है कि यह सबसे प्रचारित मिथकों में एक है। सच्चाई यह है कि न्यायपालिका इस प्रक्रिया का मात्र एक हिस्सा हैं और इसमें केन्द्रीय विधि मंत्रालय, राज्य सरकारें, राज्यपाल, उच्च न्यायालय कॉलेजियम, खुफिया ब्यूरो और अंत में शीर्ष कार्यकारी भी शामिल हैं जो किसी उम्मीदवार की उपयुक्तता की जांच करता है। मुझे इस बात को कहते हुए दुख होता है कि जो मामलों की अच्छी तरह जानकारी रखते हैं कि वे भी इस तरह के दुष्प्रचार को बढ़ावा देते हैं, लेकिन इस सब के बावजूद यह वाक्यांश कुछ वर्गों पर ही लागू होता है।