script18 राज्यों में खाता भी नहीं खुला, तीन राज्यों ने बचाई लाज, सिमटती जा रही कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की आस | Congress' hope for better performance in lok sabha election 2024 account not even opened in 18 states three states saved shame | Patrika News
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18 राज्यों में खाता भी नहीं खुला, तीन राज्यों ने बचाई लाज, सिमटती जा रही कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की आस

आने वाले चुनावी नतीजे कांग्रेस के भविष्य का निर्धारण करने वाले होंगे। बड़े राज्यों में सिमटती जा रही कांग्रेस को अब इन चुनावों से ही उम्मीद है। लगभग छह दशक तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस आने वाले चुनाव को लेकर कितनी तैयार है पढ़िए अनंत मिश्रा का विशेष लेख…

Feb 07, 2024 / 09:23 am

Paritosh Shahi

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सत्रहवीं लोकसभा का आखिरी सत्र खत्म होने को है। इसके बाद आने वाले तीन महीने देश का राजनीतिक पारा चढ़ा रहेगा। लोकसभा चुनावों के लिए तैयार देश पूरी तरह से राजनीतिक रंग में रंगने वाला है। इन चुनावों में सभी दल दम लगाएंगे लेकिन नजरें कांग्रेस पर विशेष रहेंगी। यह इसलिए भी क्योंकि चुनावी नतीजे कांग्रेस के भविष्य का निर्धारण करने वाले होंगे। बड़े राज्यों में सिमटती जा रही कांग्रेस को अब इन चुनावों से ही उम्मीद है। कहना होगा कि लोकसभा चुनाव में इस बार नजरें केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा से अधिक कांग्रेस के प्रदर्शन पर टिकी है। क्योंकि लगभग छह दशक तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस लगातार दो बार से केन्द्र में सत्ता की लड़ाई में भाजपा से करारी शिकस्त खा रही है।

 

कांग्रेस के लिए चुनौती

बीते 76 साल में से पहला अवसर है, जब पिछले दो चुनाव में कांग्रेस विपक्षी दल का दर्जा हासिल करने में भी नाकामयाब रही। इतना ही नहीं, पिछले चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी, अपने परिवार की परम्परागत सीट अमेठी तक गंवा बैठे। सीटों के लिहाज से सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश में कांग्रेस सिर्फ रायबरेली की सीट ही अपने खाते में डाल पाई जहां से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनी गईं।

राहुल पार्टी के प्रति विश्वास जुटाने में लगे हैं

लगातार हार से पस्त कांग्रेस ने इस बार मतदाताओं का मिजाज जानने तथा उन्हें अपने साथ जोडऩे के लिए देशव्यापी अभियान जरूर चला रखा है। इसी अभियान के तहत राहुल गांधी ने पहले कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली तो अभी मणिपुर से मुंबई तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए लोगों से मिलकर पार्टी के प्रति विश्वास जुटाने में लगे हैं।

लेकिन उसके लिए चिंता इस बात की है कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए विपक्षी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन भी पूरी तरह बनने से पहले ही बिखरने लगा है। दो साल पहले हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा से सत्ता छीनने के बाद कांग्रेस को लगा था कि मतदाता उसे पसंद कर रहे है। लेकिन गत वर्ष के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार ने यह उत्साह फीका कर दिया। अलबत्ता तेलंगाना में सत्ता मिलने से उसे कुछ संजीवनी जरूर मिली है।

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कभी कोई नहीं था मुकाबले में, अब तक का सबसे खराब दौर

पहले आमचुनाव में 364 सीटें जीतकर विपक्ष का सफाया कर देने वाली कांग्रेस के उतार-चढ़ाव की कहानी बेहद दिलचस्प है। पहले पांच आम चुनावों में पार्टी को हमेशा एकतरफा जीत मिलती रही। मुकाबले में खड़ा विपक्ष चुनाव मैदान में कांग्रेस के सामने कहीं टिक नहीं पाता था।

आपातकाल के बाद हुए चुनाव देश की राजनीति के साथ-साथ कांग्रेस की कहानी में भी नया मोड़ लेकर आए। वर्ष 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को पहली बार नई-नई बनी जनता पार्टी के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। लेकिन ढाई साल बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अपनी खोई ताकत फिर हासिल कर ली।

इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में वर्ष 1984 में कांग्रेस ने 415 सीटें जीतकर अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल की। लेकिन अगले चुनाव में ही फिर सत्ता से बाहर हो गई। ढाई साल की उथल-पुथल के बाद 1991 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की।

वर्ष 1996 से 2004 तक कांग्रेस सत्ता से बाहर रही। लेकिन 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दो कार्यकाल में यूपीए गठबंधन की अगुवाई करते हुए अपनी सरकार चलाई। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। तब से लेकर अब तक पार्टी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है।

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कांग्रेस की बड़ी दुविधा

प्रधानमंत्री दावेदारों के नाम पर असमंजस के बादल कांग्रेस की बड़ी दुविधा नरेन्द्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करने को लेकर है। कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी की दावेदारी को लेकर पार्टी में कोई मतभेद नहीं हैं। लेकिन सहयोगी दल राहुल की उम्मीदवारी को लेकर एक राय नहीं लगते। यही कारण है कि पिछले साल जून में पटना में हुई विपक्षी नेताओं की पहली बैठक से लेकर अब तक मामला सुलझा नही हैं। विपक्षी दलों में न प्रधानमंत्री पद उम्मीदवारी को लेकर एक राय बन पा रही है, और न ही अब तक सीट शेयरिंग को लेकर बात आगे बढ़ पा रही है।

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