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एनआईए कोर्ट ने एल्गार परिषद के आरोपी महेश राउत की जमानत याचिका की खारिज

locationनई दिल्लीPublished: Nov 25, 2021 05:57:35 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ता महेश राउत पर आरोप है कि राउत ने प्रतिबंधित संगठनों को धन मुहैया कराया था और कुछ छात्रों को नक्सली आंदोलन में शामिल होने के लिए जंगल में भेज था। हालांकि, राउत के वकील ने दावा किया कि अभियोजन पक्ष एक भी नाम सबूत के तौर पर नहीं बता सका है।

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने गुरुवार को एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार वन अधिकार अधिनियम कार्यकर्ता महेश राउत की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। महेश राउत पर कथित तौर पर माओवादी विचारधारा और गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप है।
राउत के वकील विजय हिरेमठ ने अदालत को बताया कि वन अधिकार कार्यकर्ता ने नागपुर और नासिको में पढ़ाई की है। इसके बाद 2011 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से पास आउट हुआ। वह गोवा में पढ़ा रहे थे और संघर्ष क्षेत्रों पर फेलोशिप भी किया है। इसके अलावा वह ग्रामीण विकास मंत्रालय के प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास कार्यक्रम का भी हिस्सा रहा है और गढ़चिरौली कलेक्टर हिरेमठ के साथ भी काम किया है।
बता दें कि राउत पर आरोप है कि राउत ने प्रतिबंधित संगठनों को धन मुहैया कराया था और कुछ छात्रों को नक्सली आंदोलन में शामिल होने के लिए जंगल में भेज था। हालांकि, राउत के वकील ने दावा किया कि अभियोजन पक्ष एक भी नाम सबूत के तौर पर नहीं बता सका है। विजय हिरेमठ ने ये भी कहा कि फंडिंग को लेकर रिकार्ड में भी कोई जानकारी नहीं है। न ही चार्जशीट में ऐसा कोई दावा है कि राउत नक्सली आंदोलन में भर्ती को बढ़ावा दे रहे थे।
एनआईए ने दावा किया था कि एल्गार परिषद मामले में सबसे पहले गिरफ़्तार हुए रोना विल्सन के लैपटॉप से मिले मेल में राउत का नाम था। इस मामले पर राउत के वकील विजय हिरेमठ ने अपनी दलील में कहा कि “अमेरिका के अर्सनाल डिजिटल फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में मेल को लेकर दावा किया गया था कि रोना विल्सन (Rona Wilson) के लैपटॉप से बरामद साजिश के मेल खुद उन्होंने नहीं लिखे थे, बल्कि इन्‍हें प्लांट करवाया गया था। इस रिपोर्ट आधार पर मामले को पहले ही हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। इस मेल में एक महेश और 5 लाख का उल्लेख है लेकिन एजेंसी पैसे का पता लगाने में विफल रही है। इसके साथ ही एजेंसी ये भी पता लगाने में विफल रही है कि जिस महेश का नाम मेल में है क्या महेश राउत वही महेश हैं या कोई और है। ये सभी बेबुनियाद आरोप हैं।”
वहीं, दूसरी तरफ एनआईए की तरफ से पेश हुए वकील प्रकाश शेट्टी ने तर्क दिया कि राउत पहले ही पुणे की अदालत के समक्ष इस आधार पर जमानत की याचिका दायर कर चुके हैं। उस याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया था। राउत द्वारा किये गए दावों पर पहले ही अदालत ने विचार कर जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
राउत ने पहले ही पुणे की एक अदालत के समक्ष इसी तरह के आधार पर जमानत याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था और राउत जिन सभी दस्तावेजों का जिक्र कर रहे हैं, उनकी जमानत याचिका को खारिज करते हुए पुणे की अदालत ने पहले ही विचार कर लिया है।
इसके साथ ही एनआईए ने दावा किया कि रोना विल्सन के लैपटॉप से मिले मेल में महेश के नाम का उल्लेख है और महेश राउत ने ही अज्ञात चैनलों के माध्यम से सुधीर धावले, शोमा सेन और सुरेंद्र गाडलिंग को एल्गार परिषद कार्यक्रम के लिए ₹5 लाख दिए थे। आगे एजेंसी ने ये भी दावा किया कि पुणे पुलिस ने ही शुरू में इस मामले की जांच की थी। पुणे पुलिस ने भी आरोप लगाया था कि वर्ष 2017 में राउत टीआईएसएस (TISS) के छात्रों को फरार चल रहे माओवादी नेताओं से मिलाने ले गए थे। राउत ने TISS के पूर्व छात्रों को माओवादी पार्टी मे भर्ती कराया था और उन छात्रों ने जंगलों में हथियारों का प्रशिक्षण लिया था।
बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा केस में एनआईए ने वर्ष 2018 में महाराष्ट्र के नागपूर से पुणे पुलिस वकील सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता महेश राउत और शोमा सेन को गिरफ्तार किया था।

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