जब विरोधी दलों का लिया सहयोग प्रणब मुखर्जी को यूं तो कांग्रेसी राजनीतिक के तौर पर ही याद किया जाता है, लेकिन अन्य दलों के नेताओं के भी वे काफी करीब रहे। इसकी दो मिसालें खास हैं। 1993 में प्रणब दा की राज्यसभा में आमद पर संकट था, उस वक्त पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से प्रणब दा की नजदीकी काम आई और सीपीएम ने उन्हें ऊपरी सदन में जाने में मदद की। इसी तरह राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान
ममता बनर्जी कांग्रेसी प्रत्याशी के खिलाफ थीं। तब प्रणब दा ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को फोन कर सहयोग का वादा लिया।
प्रणब दा की सीखें – धीमे चलें और स्थिर रहें – चलते हुए आवाज न करें – खुद को सभी तरह के हालात के मुताबिक ढाल लें – नम्रता के साथ मुस्कराएं
– हालात को अच्छी तरह से परखें और बारी का इंतजार करें – हमेशा खुद को सामाजिक जीवन में जरूरी बनाए रखें – खुद से किसी को किसी किस्म का खतरा महसूस न होने दें
– मदद के लिए हमेशा तैयार रहें – चमक-दमक से भी दूर रहें – रहस्यों को जानें, लेकिन ध्यान आकर्षित न करें – यादों को फोटो में कैद करते रहें – जिस नाव पर सवारी हों, उसे कभी रुकने न दें
5 दशक का राजनीतिक सफर – 1969 से 2004 के बीच 5 बार राज्यसभा सांसद रहे – 1980 में राज्यसभा में सदन के नेता चुने गए – 1982 में पहली बार देश के वित्त मंत्री बने। 2009-12 के बीच भी रहे वित्त मंत्री।
– 1991-96 के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे – 2004 में पहली बार लोकसभा सांसद बने – 2004 में लोकसभा में सदन के नेता चुने गए – 2004-06 तक मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री रहे
– 2006-09 तक देश के विदेश मंत्री रहे। 1995 में भी संभाल चुके थे विदेश मंत्रालय – 2012 में देश के 13वें राष्ट्रपति चुने गए इंदिरा हत्याकांड के बाद कांग्रेस से दूरी
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब दा कांग्रेस की मुख्य धारा से किनारे कर दिए गए थे। उन्हें
राजीव गांधी मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली थी। इसके बाद प्रणब दा ने कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई। हालांकि बाद में वे कांग्रेस में लौट आए और पार्टी का विलय कर दिया।