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कैसे कृषि कानूनों की वापसी यूपी की 71 सीटों पर डालेगी सीधा प्रभाव

locationनई दिल्लीPublished: Nov 19, 2021 03:38:16 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में 71 में से भाजपा ने 52 सीटें जीती थीं। जाट वोटों के दम पर इस बेल्ट में बीजेपी हमेशा मजबूत रही है, परंतु ये समुदाय कृषि कानून के कारण भाजपा से नाराज चल रहा था। यहां जनता की नाराजगी का फायदा समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस भी उठाना चाहते थे, परंतु अब स्थिति विपरीत दिखाई दे रही है।

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कृषि कानून की वापसी से उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत की राह अब आसान होती नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में है और यहाँ उसकी जीत की राह में किसान आंदोलन सबसे बड़ी बाधा बना हुआ था। पूर्वी उत्तर प्रदेश पर कृषि कानूनों का प्रभाव नहीं दिखा, परंतु पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों का गुस्सा देखने को मिला है। ऐसे में पीएम मोदी के कृषि कानून वापस लेने के निर्णय को राजनीतिक गलियारों में यूपी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। इस निर्णय का यूपी के चुनावों में व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकता है।
दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में 71 में से भाजपा ने 52 सीटें जीती थीं, जबकि सपा, बसपा और निर्दल उम्‍मीदवार को19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश में वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी। जाट वोटों के दम पर इस बेल्ट में बीजेपी हमेशा मजबूत रही है, परंतु ये समुदाय भाजपा से नाराज चल रहा था। किसान आंदोलन के साथ ही लखीमपुरी खीरी कांड के बाद जाटों की नाराजगी भाजपा से बढ़ गई थी।
कृषि कानून के चलते भाजपा के परंपरागत वोटर जाट समुदाय से लेकर गुर्जर, सैनी जैसी जातियां भी भाजपा से नारज थीं। राजनीतिक गलियारों में ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि इन समुदायों का झुकाव दिवंगत अजीत सिंह द्वारा स्थापित राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की ओर बढ़ रहा है। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा के साथ मिलकर बीजेपी यहां मात देने की योजना पर काम कर रहे थे। भाजपा यहाँ कई प्रयासों के बावजूद यूपी में किसानों का भरोसा फिर से जीतने में असफल रही थी।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में जनता की नाराजगी का फायदा समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस भी उठाना चाहते थे, परंतु अब स्थिति विपरीत दिखाई दे रही है। चूंकि अब कृषि कानून वापस ले लिया गया है तो यहाँ के लोगों में भाजपा को लेकर जो नाराजगी थी, वो लगभग खत्म होती दिखाई दे रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अब कांग्रेस समेत सपा और बसपा को अपनी रणनीतियों में फेरबदल करना पड़ेगा। विपक्ष के हाथ से किसानों का मुद्दा छीन चुका है। इससे पहले मोदी सरकार ने पेट्रोल डीजल के दाम घटाकर विपक्ष के हमले को ठंडा किया था। अब हो सकता है अब हमें नए मुद्दें यूपी चुनाव में देखने को मिले या फिर से धर्म और जाति पर आकर यूपी चुनाव की रणनीति सिमट जाए।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अभी सत्ता में है और यहाँ क्षेत्रीय दलों ने किसानों के मुद्दे को खूब भुनाया। कृषि कानून को लेकर लंबे समय से प्रदेश के किसान भी प्रदर्शन कर रहे थे। लखनऊ से सटे बाराबंकी, सीतापुर और रायबरेली के अलावा पश्चिमी यूपी में किसान सड़क पर विरोध प्रदर्शन करते हुए नजर आए। वहीं, दिल्ली-यूपी के गाजीपुर बार्डर पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। कृषि कानून के कारण उत्तर प्रदेश में सरकार की लोकप्रियता में भी सेंध लग गई थी जिसका परिणाम हाल ही में हुए प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी देखने को मिला था। भाजपा यूपी को लेकर कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थी। तमाम प्रयासों के बाद भाजपा को मजबूरन किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए कृषि कानून वापस लेना पड़ा है।
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