थोक महंगाई ने तोड़ा कई सालों का रिकॉर्ड थोक महंगाई दर तो 17 साल में सबसे ज्यादा दर्ज की गई है। कुछ ही महीनों बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। महंगाई पर काबू पाना केंद्र सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो गई है। एक अधिकारी ने कहा कि यूक्रेन संकट का असर इतना बुरा होगा इसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। महंगाई बढ़ने की यह एक बड़ी वजह यही है। सरकार का अनुमान है कि फर्टिलाइजर पर सब्सिडी बरकरार रखने के लिए सरकार को अतिरिक्त करीब 500 अरब रुपए की जरूरत होगी। वर्तमान बजट में इसके लिए 2.15 खरब रुपए का प्रावधान किया गया है। यदि कच्चे तेल के दाम ऐसे ही बढ़ते रहे तो सरकार को पेट्रोल-डीजल की कीमतों को काबू में रखने के लिए एक और कटौती की घोषणा करनी पड़ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो सरकार पर 1 से 1.5 खरब रुपए तक का और बोझ पड़ेगा।
- एक लाख करोड़ का कर्ज ले सकती है सरकार : केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में कटौती से होने वाले नुकसान का सेटलमेंट करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए (12.9 अरब डॉलर) कर्ज ले सकती है। सूत्रों ने बताया कि इस बारे में अंतिम निर्णय वित्तमंत्री को लेना है। ईंधन पर टैक्स में कटौती से सरकार को इतना ही नुकसान होने की आशंका है। ये रकम बाजार से उठाई जा सकती है।
पेट्रोल और डीजल के दामों में कटौती का राज्य सरकारों पर नहीं होगा कोई असर : वित्त मंत्री पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में बड़ी राहत देने के एक दिन बाद केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को स्पष्ट किया कि इस कटौती का राज्य सरकारों पर कोई असर नहीं होगा। क्योंकि, इसमें बेसिक एक्साइज ड्यूटी, जिसका हिस्सा राज्यों के साथ साझा किया जाता, को छुआ तक नहीं गया है। पेट्रोल-डीजल पर केंद्रीय करों में कटौती पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाए गए टैक्स के रोड एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस (आरआइसी) से की गई है। यानी कटौती का पूरा बोझ केंद्र सरकार पर पड़ेगा। केंद्रीय करों में कटौती के बाद राज्यों को भी वैट कम करने की सलाह देने पर कई राज्य सरकारों ने शंका व्यक्त की थी कि टैक्स में कटौती से राज्य सरकारों को भी नुकसान होगा। इसके बाद राज्य सरकारों में नुकसान की भरपायी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं थी। वित्त मंत्री की बयान के बाद राज्य सरकारों ने राहत की सांस ली है।