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हिंदू, मुसलमान लड़कियों की जल्द होती है शादी : रिपोर्ट

Published: May 07, 2015 04:53:00 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

शहरों में रहने वाले ईसाई, जैन या सवर्ण हिंदू समुदायों की शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर परिवार की लड़कियों की शादी 18 साल के बाद यानी वयस्क होने के बाद की जाती है। एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है।

शहरों में रहने वाले ईसाई, जैन या सवर्ण हिंदू समुदायों की शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर परिवार की लड़कियों की शादी 18 साल के बाद यानी वयस्क होने के बाद की जाती है। एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है।

किशोरियों के गर्भवती होने के मामले अल्पशिक्षित या निरक्षर किशोरियों में ज्यादा देखे जाते हैं, जो पढ़ी लिखी और कम से कम स्कूली शिक्षा पूरी कर चुकी लड़कियों के मुकाबले नौ गुणा ज्यादा है।

ग्रामीण क्षेत्र की युवतियों और शहरी क्षेत्रों की युवतियों के शादी में दो साल का अंतर देखा गया है, जबकि अमीर घरों की युवतियों और निर्धन परिवारों की युवतियों के विवाह में चार साल का अंतर होता है।

असम के जनजातीय समुदाय की युवतियां देर से विवाह करती हैं और वहां युवतियों को विवाहेत्तर संबंध रखने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

दिल्ली की एक संस्था ‘निरंतरÓ द्वारा देश के सात राज्यों में कराए गए सवेज़्क्षण से पता चलता है कि कम उम्र में लड़कियों का विवाह वैसे तो निचली जातियों में देखा जाता है, लेकिन सर्वणों में भी ऐसे कुछ मामले देखने को मिलते हैं।

जैन समुदाय की युवतियों के विवाह की औसत उम्र 20.8 है, ईसाई समुदाय में यह उम्र सीमा 20.6 है, सिख समुदाय में युवतियों के विवाह की उम्र सीमा 19.9 है, जबकि हिंदू और मुसलमानों में शादी की औसतन उम्र 16.7 है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 1.2 अरब की आबादी में 97.3 करोड़ संयुक्त रूप से हिंदू एवं मुसलमान हैं, जो पूरी आबादी का 80 फीसदी है।

देखा गया है कि किशोरियों के गर्भधारण या मां बनने के मामले हिंदू और मुसलमान समुदायों में सबसे ज्यादा (16 फीसदी) देखने को मिलते हैं, जबकि अन्य समुदायों में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम है।

स्वयंसेवी संस्था निरंतर की रिपोर्ट ‘अर्ली एंड चाइल्ड मैरिज इन इंडिया : ए लैंडस्केप एनालाइसिसÓ के मुताबिक, कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दिए जाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे परिवार की आय, स्थान (शहरी अथवा ग्रामीण), समुदाय, जाति और शिक्षा, जिनका सीधा संबंध एक भारतीय किशोरी या युवती की शादी की उम्र तय करने से है।

निरंतर पिछड़े समुदायों की महिलओं और लड़कियों के लिए काम करती है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि समाज का रवैया बदलने की जरूरत है। साथ ही किशोरावस्था को बाल्यावस्था की श्रेणी से अलग कर देखने की जरूरत है।

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि बाल विवाह की सामाजिक प्रकृति धीरे धीरे कम हो रही है। देखा गया है कि 20 साल की उम्र से पहले शादी करने वाली लड़कियों में मात्र 12 फीसदी ही ऐसी थीं जिनकी विवाह के समय उम्र 15 साल से कम थी।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 72 करोड़ महिलाओं की शादी 18 साल से पहले हुई है, जिनमें एक तिहाई महिलाएं भारत में हैं। जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 15.6 करोड़ है।

यह भी देखा गया है कि शिक्षा और आय की भी विवाह की उम्र तय करने में विशेष भूमिका रहती है। निरंतर की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च आय वाले परिवारों में लड़कियों की शादी कम आय वाले परिवारों की लड़कियों की तुलना में चार साल बाद होती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहरों में रहने वाली लड़कियां ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की तुलना में दो साल देर से शादी करती हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि केरल और असम में बाल विवाह की दर बेहद निम्न है, जिसका कारण इन स्थानों में मातृसत्तात्मक समाज और महिलाओं का शिक्षित होना है।

(इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ बनी एक व्यवस्था के तहत। यह एक गैर लाभकारी पत्रकारिता मंच है, जो जनहित में काम करता है।)
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