भारत के आंतरिक मामलों में चीनी हस्तक्षेप
दरअसल, ताइवान का मुद्दा चीन के लिए ठीक वैसा ही है जैसा कि भारत के लिए जम्मू कश्मीर। अंतर ये है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और ताइवान स्वायत्त द्वीप है। चीन जबरदस्ती ताइवान पर अपना हक जताता रहा है और कुछ ऐसा ही पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर करता है। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान का चीन ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है। वर्ष 2010 में, चीन-भारत संबंधों में तब काफी तनाव देखने को मिला था जब बीजिंग ने भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हुए कश्मीर में स्थित एक भारतीय सैन्य कमांडर को वीजा देने से इनकार कर दिया था।
इसी वर्ष फरवरी माह में चीन और पाकिस्तान ने एक संयुक्त बयान में कश्मीर का राग अलापा था। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) भी चीन की घटिया रणनीति का हिस्सा है जिसका भारत विरोध करता रहा है। चीन द्वारा बार बार भारत के आंतरिक मुद्दे पर हस्तक्षेप देखने को मिला है, ऐसे में भारत को भी अब ताइवान के जरिए चीन को उसी की दवा का स्वाद चखाना आवश्यक हो जाता है। अब जब ताइवान के मुद्दे पर दुनिया दो गुट में बंटती हुई नजर आ रही है तो भारत घटनाक्रम की निगरानी कर रहा है, लेकिन भविष्य में वो चीन को बड़ा झटका दे सकता है।
भारत ने बदला ताइवान के मुद्दे पर अपना स्टैंड
भारत के पास भी ताइवान कार्ड के जरिए चीन को सबक सिखाने का बेहतरीन अवसर है। हालांकि, भारत के इलाकों में चीन की घुसपैठ बढ़ी तो भारत ने भी ताइवान के मुद्दे पर अपना स्टैंड बदलना शुरू कर दिया था। वास्तव में LAC पर चीनी घुसपैठ भारत के धैर्य को परखने की बीजिंग की रणनीति का हिस्सा रहा है। पूर्व की सरकारों ने चीन की दबंगई का कोई मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया, लेकिन अब इस स्थिति में बदलाव हुआ है। चाहे गलवान में चीनी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब देना हो या LAC पर बुनियादी ढांचों के निर्माण को विस्तार देना हो। भारत अब चीन की गुस्ताखी को बर्दाश्त नहीं कर रहा। यही नहीं, सैन्य अभ्यास के जरिए दक्षिण चीन सागर में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है।
चीन के लिए ताइवान संवेदनशील मुद्दा
ताइवान चीन के लिए सबसे संवेदनशील मुद्दा है और इसके बाद तिब्बत का नंबर आता है। चीन ने वन चाइना पॉलिसी के तहत दशकों तक ताइवान को अपना क्षेत्र बता अन्य देशों को इससे दूर रखने का प्रयास किया है। भारत जम्मू कश्मीर पर चीन के स्टैन्ड का बदला ताइवान के जरिए ले सकता है। ये चीन ही है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब-जब पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा उठाता है तब-तब वो उसका साथ देता है। पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने से रोकने के पीछे भी चीन की बड़ी भूमिका रही है। यहाँ तक कि पीओके को लेकर भारत की रणनीति के खिलाफ भी चीन मैदान में दिखाई दिया है। ऐसे में भारत ताइवान को मजबूत कर चीन को उसकी औकात दिखा सकता है।
भारत बढ़ाए ताइवान के साथ राजनयिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध
पिछले कुछ समय में भारत ने ताइवान के साथ अपने व्यापारिक, राजनयिक और सांस्कृतिक संबंधों में विस्तार किया है। भारत खुलकर तो नहीं, लेकिन चीन के खिलाफ ताइवान कार्ड जरूर खेल रहा है। कई देश हैं जो ताइवान को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देते हैं, वे ताइपे के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध बढ़ाने के नए तरीके खोज रहे हैं। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि ताइवान के संबंध जितना अन्य देशों से मजबूत होंगे चीन की नीतियों की उतनी ही धज्जियां उड़ेंगी। भारत भी उन देशों में शामिल है जो ताइवान के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है।
वर्ष 2016 के विपरीत, वर्ष 2020 में भारतीय सांसद मीनाक्षी लेखी ने साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में ऑनलाइन हिस्सा लिया था और इस तरह से भारत ने चीनी की नीतियों की धज्जियां उड़ाई थी। इसके अलावा भारत और ताइवान के बीच व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि देखने को मिली है। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2000 में भारत-ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था जोकि 2019 में बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। इससे चीन को भारत ने सख्त संदेश दिया था कि वो उसकी वन चाइना पॉलिसी का समर्थन नहीं करता है। इसी क्रम में ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (TECC) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) के बीच एक समझौता भी किया था।
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दिल्ली-ताइपे संबंध हुए और मजबूत
बता दें कि भारत का ताइवान में ऑफिस भी है जो भारत-ताइपे एसोसिएशन से संचालित है। भारत ने वर्ष 2018 में ताइवान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (अमरीका) गौरांगलाल दास को भारत-ताइपे एसोसिएशन का महानिदेशक नियुक्त किया था। वर्ष 2018 से दोनों सरकारों के बीच प्रौद्योगिकी (IT), ऊर्जा, टेलीकम्यूनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश का विस्तार करने के प्रयास देखने को मिल रहे हैं।
इसके अलावा Apple iPhones के तीन सबसे बड़े कान्ट्रैक्टर - Foxconn, Winstron और Pegatron - भारत में iPhones के लिए अपने प्रोडक्शन फैसिलिटी का विस्तार कर रहे हैं। आंकड़ों को देखें तो वर्तमान में 80 से अधिक ताइवान की कंपनियां और एंटिटी भारत में काम कर रही हैं। ताइवान और भारत के मजबूत होते संबंधों से भी चीन की टेंशन बढ़ी है।
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क्वाड ने बढ़ाई ताइवान की हिम्मत
क्वाड चीन दादागिरी को खत्म करने के लिए बनाया गया था। इसमें भारत के अलावा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। भारत क्वाड के जरिए भी ताइवान के समर्थन में खड़ा है और उसके अपने कारण भी हैं। हालांकि, ताइवान और क्वाड दोनों के पास एक-दूसरे के साथ संबंध बढ़ाने की अपनी-अपनी वजहें हैं। चीन की विस्तारवादी नीति आगे चलकर अंतराष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन कर सकता है। क्वाड के देश ताइवान को चीन के खिलाफ मजबूत करने में जुटे हैं। ताइवान की सुरक्षा को मजबूत करने से क्वाड को इंडो-पैसिफिक में डेमोक्रेसी का समर्थन करने और चीन की आक्रामकता को संतुलित करने के अपने उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है।