नाखून से छोटे आकार की ग्रास ज्वेल का नाम ‘रत्नमाला’ और 150 मीटर से ज्यादा पंख फैलाने वाली गोल्डन बर्डविंग का नाम ‘रंगोली जटायु’ रखा गया है। कॉमन वर्डविंग को ‘बिंदी जटायु’ और गोल्डन बर्डविंग को ‘रंगोली जटायु’ कहा जाएगा। भारत में तितलियों की खोज अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई थी, इसलिए उनके नाम अंग्रेजी में रखे गए। हिंदी में नाम रखने के लिए पिछले साल राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा का गठन किया गया। इसमें वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, भाषा विशेषज्ञ, वनाधिकारी समेत कई अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल हैं। सभा दूसरे चरण में हिंदी भाषी क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों और तीसरे चरण में बाकी तितलियों के नाम रखेगी।
लाडली और छोटा मदन के साथ निंबुड़ा भी
कुछ तितलियों के ऐसे नाम रखे गए हैं, जो हिंदी भाषी क्षेत्रों में बच्चों के होते हैं। मसलन डार्लेट प्रजाति की तितली का नाम ‘लाडली’, स्मॉलर डोरलेट का ‘छुटकी लाडली’, स्मॉल क्यूपिड का ‘छोटा मदन’, कार्नेलियन का ‘लल्लन’, ग्रास ब्लूज का ‘नीलू’ और ग्रास डाट्र्स का ‘घसियारा’ रखा गया है। नींबू के पौधे पर लार्वा रखने वाली लाइम ब्लू को अब देश में ‘निंबुड़ा’ नाम से पहचाना जाएगा।
पारिस्थितिकी तंत्र में अहम योगदान
सभा की सदस्य पर्यावरणविद धारा ठक्कर का कहना है कि बेहद छोटे जीवनकाल वाली तितलियां पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य चक्र में विशेष भूमिका निभाती हैं। कंक्रीट के जंगलों के बीच जहां हरा-भरा वातावरण है, वहां तितलियां अपने आप आने लगती हैं। ये हवा, पानी और मिट्टी को शुद्ध करती हैं। तितलियां कई हजार किलोमीटर तक प्रवास कर सकती हैं।