क्यों 1 मई को ही क्यों मनाया जाता है लेबर डे?
1 मई, 1886 इसी दिन अमेरिका के लेबर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखने के लिए हड़ताल की थी। तब मजदूरों से एक दिन में 15 घंटों तक काम लिया जाता था। उस समय ये प्रोटेस्ट काफी समय तक तक चला था जिसमें लगभग 11 हजार फैक्ट्रियों के 3 लाख 80 हजार मजदूर ने हिस्सा लिया था। इस प्रोटेस्ट को रोकने के लिए पुलिस ने गोली तक चलाई थी जिसमें कई मजदूरों की जान चली गई थी और 100 से अधिक की जान चली गई थी। इसके बाद साल 1889 में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस की मीटिंग में ये फैसला लिया गया कि मजदूरों से केवल 8 घंटे ही काम लिया जा सकता है। इसी दौरान 1 मई से मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया था और हॉलिडे भी मनाने जाने लगा।
भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 से मनाना शुरू किया गया था। तब इसे मद्रास दिवस के तौर पर मनाया जा रहा था।। किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में ये निर्णय लिया गया था। ये दिन इस बात को याद दिलाता है कि मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए हमेशा आवाज को बुलंद रखना चाहिए।
1 मई, 1886 इसी दिन अमेरिका के लेबर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखने के लिए हड़ताल की थी। तब मजदूरों से एक दिन में 15 घंटों तक काम लिया जाता था। उस समय ये प्रोटेस्ट काफी समय तक तक चला था जिसमें लगभग 11 हजार फैक्ट्रियों के 3 लाख 80 हजार मजदूर ने हिस्सा लिया था। इस प्रोटेस्ट को रोकने के लिए पुलिस ने गोली तक चलाई थी जिसमें कई मजदूरों की जान चली गई थी और 100 से अधिक की जान चली गई थी। इसके बाद साल 1889 में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस की मीटिंग में ये फैसला लिया गया कि मजदूरों से केवल 8 घंटे ही काम लिया जा सकता है। इसी दौरान 1 मई से मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया था और हॉलिडे भी मनाने जाने लगा।
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भारत में कब हुई थी इसकी शुरुआत?भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 से मनाना शुरू किया गया था। तब इसे मद्रास दिवस के तौर पर मनाया जा रहा था।। किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में ये निर्णय लिया गया था। ये दिन इस बात को याद दिलाता है कि मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए हमेशा आवाज को बुलंद रखना चाहिए।