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करगिल युद्घः शहीद अनुज नय्यर ने PAK तोपों की परवाह न करते हुए जीता पाॅइंट 4875, पिता ने रिश्वतखोर सिस्टम से लड़ी जंग

Published: Jul 26, 2017 08:01:00 am

Submitted by:

Abhishek Pareek

पाकिस्तान के साथ सबसे ताजा आैर एक तरह से इतिहास के सबसे मुश्किल युद्घों में शुमार करगिल युद्घ अपने पीछे भारतीय सेना के अदम्य शौर्य की एेसी कहानियां छोड़ गया है जो दुनिया भर में कही आैर सुनी जाती है।

पाकिस्तान के साथ सबसे ताजा आैर एक तरह से इतिहास के सबसे मुश्किल युद्घों में शुमार करगिल युद्घ अपने पीछे भारतीय सेना के अदम्य शौर्य की एेसी कहानियां छोड़ गया है जो दुनिया भर में कही आैर सुनी जाती है। पाकिस्तान की नापाक हरकत का भारतीय सेना ने एेसा मुंहतोड़ जवाब दिया कि उनके सैनिक रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए थे। ये जीत हमें कर्इ बहादुर सैनिकों के बलिदान के बाद मिली है। इनमें से एक है कैप्टन अनुज नय्यर। करगिल युद्घ के बाद शहीद कैप्टन अनुज नय्यर को महावीर चक्र से नवाजा गया।
अनुज नय्यर का जन्म 25 अगस्त 1975 में दिल्ली में हुआ। पिता एस के नय्यर दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स में विजीटिंग प्रोफेसर थे आैर मां मीना नय्यर साउथ कैंपस लाइब्रेरी में काम करती थीं। अनुज पढ़ने में होशियार था। खेलकूद में भी आगे था। अनुज ने एनडीए ज्वाइन किया आैर 17वीं जाट बटालियन में कमीशन हुआ। 1997 में तब उसकी उम्र सिर्फ 22 साल थी।
1999 में कारगिल में घुसपैठ की खबर मिली आैर भारत-पाकिस्तान के बीच एेतिहासिक करगिल युद्घ छिड़ गया। 17वीं जाट बटालियन में जूनियर कमांडर कैप्टन नय्यर को जुलार्इ में पाॅइंट 4875 को खाली कराने का टास्क दिया गया। पाकिस्तानी घुसपैठियों को निकालने का ये उनका पहला मिशन था। समुद्र तल से 15900 फीट ऊपर स्थित यह पाॅइंट युद्घ के लिहाज से एक अहम जगह थी। सीधी ढलान आैर ऊंचार्इ पर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराना चुनौतीपूर्ण था। बावजूद इसके 6 जुलार्इ 1999 को कैप्टन अनुज नय्यर अपने सैनिकों के साथ इस पाॅइंट पर फिर से भारत का कब्जा करने के लिए निकल पड़े।
इस पाॅइंट के लिए लड़ते हुए शुरुआत में ही नय्यर की टीम के कमांडर घायल हो गए। टीम को दो टुकड़ों में बांटा गया। एक का नेतृत्व कैप्टन विक्रम बत्रा आैर दूसरे का नेतृत्व कैप्टन अनुज नय्यर ने किया। टीम के सात लोगों के साथ अनुज नय्यर ने चोटी की आेर बढ़ना शुरू किया। घुसपैठियों के साथ ही पाकिस्तानी आर्टिलरी की चुनौती भी उनके सामने थी। हालांकि वे नय्यर के इरादों को डिगा नहीं सके। इस दौरान नय्यर ने 9 घुसपैठियेां को मार गिराया आैर 3 मशीनगर बंकर ध्वस्त कर दिए।
घुसपैठियों को पीछे हटना पड़ा। हालांकि चौथे बंकर को खाली कराते वक्त एक ग्रेनेड सीधे अनुज नय्यर की ऊपर अाकर गिरा। बावजूद इसके उन्होंने हार मानना तो जैसे सीखा ही नहीं था। वे अपनी टीम को लेकर आगे बढ़ते रहे आैर दुश्मन से आखिरी बंकर खाली कराकर ही दम लिया। इसी लड़ार्इ में 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए। नय्यर की टीम चार्ली का एक भी जवान जिंदा नहीं बचा। बाद में दुश्मन ने वापस पाॅइंट 4875 पर कब्जा कर लिया, लेकिन कैप्टन बत्रा की टीम ने उन्हें वापस खदेड़ दिया। बाद में इसी पाॅइंट के जरिए टाइगर हिल को कब्जे में लिया गया।
एक लड़ार्इ खत्म हुर्इ तो दूसरी शुरू
युद्घ समाप्ति के बाद नय्यर के परिवार को पेट्रोल पंप देने की सूचना गृह मंत्रालय ने एक पत्र के जरिए दी, लेकिन उनकी मां ने इसे लेने से मना कर दिया। हालांकि तत्कालीन जनरल वी पी मलिक के समझाने पर वे इसके लिए तैयार हुर्इं। वीपी मलिक ने उनसे कहा था कि ये हम आपको नहीं बल्कि आपके बेटे को दे रहे हैं। अपने बेटे को लोगों के बीच हमेशा जिंदा रखने के लिए उन्होंने ये पेट्रोल पंप काफी सोच विचार के बाद लेने का निर्णय किया। हालांकि सिस्टम में बैठे रिश्वतखोरों ने एक शहीद के परिवार को भी नहीं छोड़ा। नय्यर के परिवार से रिश्वत की मांग की गर्इ लेकिन उनके पिता ने रिश्वत देने से साफ मना कर दिया।

रिश्वतखोरों ने किया परेशान

डेढ साल बाद पेट्रोल पंप के लिए भूमि तो मिली लेकिन वो उनके घर से 40 से 50 किलोमीटर दूर थी। फिर भी उन्होंने अपने बेटे के हक के लिए ये स्वीकार किया आैर एनआेसी के लिए कभी दिल्ली पुलिस तो कभी दिल्ली नगरनिगम जैसी जगहों के चक्कर काटने शुरू किए। हर जगह उनसे रिश्वत की मांग की गर्इ। इस दौरान अधिकारियों ने सारी सीमाआें को पार करते हुए जब गुंडों से धमकी दिलाना शुरू कर दिया।
तत्कालीन PM वाजपेयी के दखल के बाद हुर्इ कार्रवार्इ
हार कर उन्होंने उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से पत्र लिखकर मदद मांगी। पीएमआे से वक्त मिला। वाजपेयी ने उनसे मुलाकात में एेसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही का भरोसा दिया। बाद में पीएम के हस्तक्षेप के बाद 16 अधिकारियों को तुरंत सस्पेंड किया गया। आज दिल्ली के वसुंधरा एनक्लेव में ये पेट्रोल पंप स्थित है जिसकी पूरी कमार्इ एक ट्रस्ट केा जाती है जो गरीब बच्चों की पढ़ार्इ में मदद करता है।
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