दरअसल, एक बीमा कंपनी द्वारा दायर एक अपील पर जस्टिस एचपी संदेश की हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सुनवाई की। इस याचिका में 57 वर्षीय रेणुका की विवाहित बेटियों को मुआवजे में हक को चुनौती दी गई थी। रेणुका की 12 अप्रैल, 2012 को उत्तर में यमनूर, हुबली के पास एक दुर्घटना में मौत हो गई थी। रेणुका की मौत के बाद उसके पट्टी, तीन बेटियों और एक बेटे के मुआवजे की मांग की थी। मोटर एक्सीडेंट क्लाइम्स ट्राइब्यूनल ने परिवार को 6 फीसदी के वार्षिक ब्याज के साथ ₹5,91,600 का मुआवजा दिया था।
कोर्ट ने कहा कि, निर्भरता का अर्थ केवल वित्तीय निर्भरता नहीं है। इसमें निशुल्क सेवा निर्भरता, फिज़िकल निर्भरता, भावनात्मक निर्भरता और साइकलाजिकल निर्भरता भी आता है और इसे कभी धन के मामले में कभी समान नहीं किया जा सकता है।
इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मृतक की उम्र और उसकी आय को लेकर बीमा कंपनी द्वारा की गई अन्य अपीलों को भी खारिज कर दिया है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब विवाहित बेटियाँ भी माता-पिता के बीमा में अपना हक मांग सकती है और कानून के तहत कोई भी कंपनी या रिश्तेदार इससे इनकार नहीं कर सकते हैं।