scriptनहर के 3 दिन के काम के लिए 5 करोड़ रुपए का भुगतान, कर्नाटक हाई कोर्ट हैरान, 5 अप्रैल को अगली सुनवाई | Karnataka High Court surprised 3 days of canal work Rs 5 crore Payment | Patrika News

नहर के 3 दिन के काम के लिए 5 करोड़ रुपए का भुगतान, कर्नाटक हाई कोर्ट हैरान, 5 अप्रैल को अगली सुनवाई

locationनई दिल्लीPublished: Mar 31, 2023 08:55:47 pm

Karnataka High Court लॉकडाउन के दौरान तीन दिन में नहर के काम के लिए पांच करोड़ का भुगतान। यह सुनकर कर्नाटक हाई कोर्ट हैरान रह गया। अब पांच अप्रैल को इस केस की सुनवाई करेगा।

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नहर के 3 दिन के काम के लिए 5 करोड़ रुपए का भुगतान, कर्नाटक हाई कोर्ट हैरान

कर्नाटक हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला आया कि, जिसे सुनकर हाई कोर्ट हैरान रह गया। मामला था कि, एक नहर के काम के लिए सरकारी कार्यकारी अभियंता ने 5 करोड़ रुपए भुगतान की मंजूरी दी। और ताज्जुब इस बात की है कि, इस नहर का काम 3 दिन में पूरा हो गया था। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, हेमवती नहर इकाई के अभियंता ने यह मंजूरी लॉकडाउन के दौरान दी थी। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि, वह इंजीनियर के श्रीनिवास पर मुकदमा न चलाने के अपने फैसले को सही ठहराने वाले रिकॉर्ड पेश करे। 27 मार्च, 2020 को नहर में कुछ निर्माण के लिए कार्य आदेश महामारी के बीच में जारी हुआ। आदेश के बाद 5.02 करोड़ रुपए का बिल जमा किया गया और उसकी तुरंत मंजूरी दे दी गई। इस पर याचिकाकर्ता नागेगौड़ा ने कर्नाटक सरकार के मार्च 2022 के उस आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसमें लोकायुक्त के समक्ष मामला लंबित होने का हवाला देकर अभियंता के खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया था। कर्नाटक हाई कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 5 अप्रैल को करेगा।
याचिकाकर्ता नागेगौड़ा, आदेश को रद्द करने की मांग की

याचिकाकर्ता नागेगौड़ा ने राज्य सरकार के मार्च 2022 के उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें लोकायुक्त के समक्ष मामला लंबित होने का हवाला देते हुए इंजीनियर के खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया था। हालांकि, लोकायुक्त ने वास्तव में यह कहते हुए मामले को बंद कर दिया था कि, मामले में कुछ भी अनुचित नहीं है।
कर्नाटक पारदर्शिता के तहत धन स्वीकृत किया था – प्रतिवादी

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि, उसने सार्वजनिक खरीद अधिनियम में कर्नाटक पारदर्शिता के तहत धन स्वीकृत किया था। और यह कि लोकायुक्त ने निर्णय लिया था कि, कानून में कोई समस्या नहीं थी। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि, विचाराधीन याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई अधिकार नहीं था।
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