जजों को भारत विरोधी ग्रुप का हिस्सा बताया था
इसी साल 18 मार्च को किरण रिजिजू ने कहा था कि कुछ रिटायर्ड जजों की बात सुनकर लगता है की ये एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं। ये लोग कोशिश करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए। देश के खिलाफ इस तरह के काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी होगी।
देश के बाहर और भीतर भारत विरोधी ताकतें एक ही भाषा का इस्तेमाल करती हैं कि यहां लोकतंत्र खतरे में है, अल्पसंख्यक खतरे में है। इंडिया में मानवाधिकार का अस्तित्व ही नहीं है।भारत विरोधी ग्रुप जो कहता है, वही भाषा राहुल गांधी भी इस्तेमाल करते हैं। इससे पुरे विश्व में भारत की छवि खराब होती है।
देश संविधान से चलता है
इसी साल फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम के दौरान किरेन रिजिजू ने सरकार बनाम न्यायपालिका की बात से इनकार किया था और कहा था कि देश में न्यायपालिका बनाम सरकार जैसा कुछ नहीं है। यह लोग हैं, जो सरकार का चुनाव करते हैं, वो हीं सर्वोच्च हैं और हमारा देश संविधान के अनुसार चलता है।
कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता, जनता ही मालिक
जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में ही नाराजगी जताई थी। केंद्र से कहा था कि हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो। इसके बाद रिजिजू ने प्रयागराज में एक सभा के दौरान कहा था- मैंने देखा कि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर चेतावनी दी है। इस देश के मालिक यहां के लोग हैं, हम सिर्फ उनके सेवक हैं। हम संविधान को सर्वोपरि मानते हैं, संविधान के अनुसार ही देश चलेगा। कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है।
कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है?
कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कहीं कोई जिक्र नहीं है। 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए यह पहली बार प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक फोरम जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश दूसरी बार भेजने पर सरकार के लिए मानना जरूरी होता है। अगर इसी फैसले को मानने में सरकार देर करती है तो फिर घमासान मचता है।
रिटायर्ड अफसरों ने किया था विरोध
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की व्यवस्था के खिलाफ भी किरेन रिजिजू मुखर रहे और कई बार इसकी आलोचना की। किरेन रिजिजू के बयानों के चलते ही बीते कुछ माह पहले ही 90 रिटायर्ड अफसरों ने इस पर नाराजगी जताई थी और कानून मंत्री को पत्र लिखा था। अफसरों ने पत्र में लिखा था कि कानून मंत्री ने कई मौकों पर जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम और न्यायिक स्वतंत्रता पर ऐसे बयान दिए, जो सुप्रीम कोर्ट पर हमला लगते हैं।
पत्र में रिजिजू के बयानों की सामूहिक निंदा की गई और कहा गया कि न्यायिक स्वतंत्रता से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता। वकीलों के एक बड़े ग्रुप ने भी किरेन रिजिजू के बयानों का विरोध किया था और कहा था कि उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं को लांघा है। सरकार की आलोचना करना, राष्ट्र की आलोचना करना नहीं है ना ही ये देशद्रोह है। हमें जहां भी सरकार की नीतियों में कमी दिखेगी हम उसपर सवाल करेंगे।