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जांजगीर चंपा

आखिरकार जिला अस्पताल के डॉक्टर की लापरवाही से चली गई मासूम की जान

जिला अस्पताल में डॉक्टर की लापरवाही के चलते एक मासूम की जान चली ही गई।
परिजनों ने मुकेश कुमार पिता स्व. रामेश्वर (12) को खून की कमी के कारण
गुरुवार को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

जांजगीर चंपाJul 23, 2017 / 03:21 pm

Piyushkant Chaturvedi

Lastly, the innocent of the doctor of the district

Lastly, the innocent of the doctor of the district hospital went unnoticed

जांजगीर-चांपा. जिला अस्पताल में डॉक्टर की लापरवाही के चलते एक मासूम की जान चली ही गई। परिजनों ने मुकेश कुमार पिता स्व. रामेश्वर (12) को खून की कमी के कारण गुरुवार को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बल्ड मिलने के बाद भी डॉक्टर ने उसे ब्लड चढ़ाने से मना कर दिया था। मासूम ने शनिवार की सुबह चार बजे दम तोड़ दिया। यदि बच्चे को समय पर ब्लड चढ़ा होता तो शायद उसकी जान बच गई होती।

पत्रिका ने जिला अस्पताल में ब्लड बैंक की बदहाली की खबर को 21 जुलाई के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। डॉक्टर मरीजों को ब्लड चढ़ाने में किस तरह की लापरवाही बरतते हैं इसका जीता जागता सच बताया गया था। इतना ही नहीं इसकी जानकारी जिले के मुखिया कलेक्टर डॉ. एस भारतीदासन और अस्पताल के मुखिया सिविल सर्जन डॉ. पीसी जैन और हेल्थ के मुखिया डॉ. वी जय प्रकाश को भी थी, लेकिन उन्होंने भी इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया और उसका परिणाम मुकेश को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। मुकेश कुमार को सिकलसेल की शिकायत थी। उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पहले मासूम के परिजन ब्लड बैंक में खून के लिए दर-दर भटक रहे थे। डोनर के माध्यम से ब्लड मिल तो उसे चढ़ाने के लिए डॉक्टर हीला हवाला करने लगा। बड़ी मुश्किल से शुक्रवार शाम ब्लड चढ़ा भी तो डॉक्टर उसकी देख-रेख में कोताही बरते नजर आए। आखिर डॉक्टरों की लापरवाही बच्चे की जान लेकर मानी।
 
बुझा घर का चिराग-
मुकेश के पिता रामेश्वर की दो साल पहले सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। इसके बाद मुकेश की मां अपने मायके जांजगीर में रहने लगी। अब मासूम की मौत से उसके घर का चिराग भी बुझ गया। मां व उसकी एक बहन का रो-रोकर बुरा हाल है। लोगों का आरोप है कि यदि समय पर सही इलाज मिलता तो आज मुकेश जिंदा होता।

तत्काल किया डिस्चार्ज- मरीज की मौत के बाद डॉक्टर इतने सजग हुए कि मरीज को तत्काल डिस्चार्ज कर दिया। डॉक्टरों को आशंका थी कि कहीं मरीज की मौत होने के बाद अस्पताल में बवाल मत हो। डॉक्टरों ने तत्काल मौत का सर्टिफिकेट भी दे दिया। सुबह उसकी छुट्टी भी दे दी। शव का पोस्टमार्टम भी नहीं किया। शव का पोस्टमार्टम होता तो मरीज के परिजनों को प्राकृतिक आपदा के तहत शासन की ओर से मुआवजा भी मिल सकता था।

सिविल सर्जन को पता भी नहीं- जिला अस्पताल में मरीज की मौत होने के बाद यहां के प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. यूके मरकाम को पता भी नहीं है। अस्पताल के जिम्मेदार किस कदर बेपरवाह हैं या फिर डॉक्टर भी उन्हें गुमराह करने में तुले हुए हैं यह समझ से परे है। जबकि अस्पताल के प्रत्येक गतिविधि उनकी नजरों से गुजरनी चाहिए।
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