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जनप्रतिनिधि से 12 प्रधानमंत्री देने वाली सीटों में से 9 पर भाजपा का कब्जा, यूपी में 8 सीटें

Lok Sabha Election 2024: आजाद भारत के इतिहास में ऐसी 12 लोकसभा सीटें हैं, जहां से चुने गए जन-प्रतिनिधि प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। रोचक तथ्य यह है कि अब उनमें से नौ पर भाजपा काबिज हो चुकी है। पढ़िए शादाब अहमद की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीApr 14, 2024 / 07:57 am

Shivam Shukla

Lok Sabha Election 2024

जन-प्रतिनिधियों को संसद पहुंचाने वाली प्रत्येक लोकसभा सीट का वैसे तो बराबर महत्त्व होता है, लेकिन किसी प्रतिनिधि के प्रधानमंत्री बनने के बाद संबंधित सीट अचानक विशेष हो जाती है। इन खास सीटों पर पीएम की विरासत आगे बढ़ती रहती है और चुनाव में इन्हें ‘हॉट सीट’ मान लिया जाता है। आजाद भारत के इतिहास में ऐसी 12 लोकसभा सीटें हैं, जहां से चुने गए जन-प्रतिनिधि प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। रोचक तथ्य यह है कि अब उनमें से नौ पर भाजपा काबिज हो चुकी है। अकेले उत्तर प्रदेश में ऐसी आठ सीटें हैं। उत्तर प्रदेश की ख्याति देश को पीएम देने वाले राज्य के रूप में होती है। यहां से जीत कर नौ प्रधानमंत्री बने। इसके अलावा, दो बार अंतरिम प्रधानमंत्री देने वाली गुजरात की साबरकंठा सीट भी अब भाजपा के पास है।

इंदिरा गांधी की सीट रही उत्तर प्रदेश की रायबरेली कांग्रेस व तेलंगाना की मेडक सीट बीआरएस के कब्जे में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद वाराणसी से भाजपा के टिकट पर तीसरा चुनाव लड़ रहे हैं। रायबरेली से इस बार सोनिया गांधी चुनाव में नहीं हैं। कांग्रेस ने रायबरेली और राजीव गांधी की सीट रही अमेठी से भी फिलहाल उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट बलिया से उनके पुत्र नीरज शेखर को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। बागपत सीट से करीब 47 साल बाद चौधरी चरण सिंह के परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव में नहीं उतरा है। फिलहाल पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवारों में सिर्फ चंद्रशेखर का परिवार ही अपनी परंपरागत सीट से चुनाव में नजर आ रहा है।

मोदी की वाराणसीः लगातार तीसरी बार प्रत्याशी

नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में आने के लिए वाराणसी को चुना। उन्होंने पहला चुनाव 2014 में वाराणसी व वडोदरा से लड़ा था। मोदी ने वाराणसी में आप के अरविंद केजरीवाल को करीब 3 लाख 71 हजार और वडोदरा में कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री को करीब 5 लाख 70 हजार से अधिक वोट से हराया। बाद में मोदी वडोदरा से इस्तीफा देकर वाराणसी के हो गए। इस बार उनके सामने कांग्रेस-सपा के संयुक्त उम्मीदवार अजय राय है।

नेहरू की फूलपुरः दस चुनाव से हार रही कांग्रेस

पहले लोकसभा चुनाव (1952) में जवाहर लाल नेहरू ने यूपी की फूलपुर से चुनाव जीता। वह लगातार तीन चुनाव जीते। 1962 में नेहरू ने समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को 64 हजार के बड़े अंतर से हराया। यहां कांग्रेस ने आखिरी बार 1984 में चुनाव जीता था। बाद के दस चुनावों से वह हार रही है। इस बार गठबंधन के खाते में गई इस सीट पर सपा को प्रत्याशी देना है। भाजपा ने सांसद केसरी देवी पटेल का टिकट काटकर प्रवीण पटेल को उतारा है।

शास्त्री की इलाहाबादः दो चुनाव से भगवा

लाल बहादुर शास्त्री इलाहाबाद से सांसद रहते हुए देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उनकी मौत के बाद यहां से उनके पुत्र हरिकृष्ण शास्त्री चुने गए। इस सीट से हेमवती नंदन बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अमिताभ बच्चन, मुरली मनोहर जोशी, रीता बहुगुणा जैसे बड़े नाम वाले नेता सांसद रहे। पिछले दो चुनाव से भाजपा का यहां कब्जा है। भाजपा ने रीता बहुगुणा का टिकट काट कर केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी को दिया है।

इंदिरा की रायबरेलीः विरासत पर इस बार सस्पेंस

प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने पहला चुनाव रायबरेली से 1967 में जीता। इंदिरा ने 1971 में करीब 39 फीसदी से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीता था। लेकिन, आपातकाल के बाद उन्हें 1977 में जनता पार्टी के राजनारायण ने 55 हजार वोटों से हरा दिया। हालांकि 1980 में इंदिरा ने तब के आंध्र प्रदेश की मेडक के साथ रायबरेली से चुनाव लड़ा। दोनों जगह से वह जीती और प्रधानमंत्री बनीं। बाद में रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया था। यूपी की दूसरी सीटों के मुकाबले रायबरेली की जनता का मिजाज अलग रहा है। यही वजह है कि यहां पर कांग्रेस लगातार जीतती रही है। इंदिरा की बहू सोनिया गांधी 2004 से 2019 तक पांच चुनाव जीत चुकी हैं। इस बार उनके राज्यसभा में जाने से उनकी बेटी प्रियंका गांधी के यहां से चुनाव लड़ने की अटकलें हैं। वहीं मेडक सीट अब तेलंगाना में है। यहां पिछले तीन चुनावों से बीआरएस का कब्जा है।

मोरारजी की सूरतः अब भाजपा का गढ़

1977 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने वाले मोरारजी देसाई सूरत से लगातार पांच बार सांसद रहे। इनमें चार बार वह कांग्रेस और आखिरी बार 1977 में जनता पार्टी से सांसद बनकर प्रधानमंत्री बने। यह सीट आज भाजपा का गढ़ है। 1989 से भाजपा यहां लगातार जीत रही है। भाजपा ने इस बार तीन बार की सांसद दर्शना जरदोश का टिकट काटकर मुकेश दलाल को उम्मीदवार बनाया है।

राजीव की अमेठीः स्मृति की छाप

संजय गांधी की दुर्घटना में मौत के बाद राजीव गांधी ने अमेठी का उपचुनाव लड़ा। वहीं 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह प्रधानमंत्री बने। सियासत में प्रवेश करने के बाद राजीव की पत्नी सोनिया गांधी ने 1999 के चुनाव के लिए अमेठी को चुना। वह यहां से जीतीं। राजीव के पुत्र राहुल गांधी ने भी यही से सियासत में प्रवेश किया। 2004 में यहीं से पहला चुनाव लड़े। राहुल ने तीन लगातार चुनाव जीते, लेकिन 2019 का चुनाव स्मृति इरानी से हार गए। इस बार स्मृति फिर से चुनाव मैदान में है। राहुल के यहां से उतरने पर फिलहाल संशय बना हुआ है।

अटल की लखनऊः अब राजनाथ का राज

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री बने, तब वह लखनऊ से भाजपा के सांसद रहे। उन्होंने 1991 से 2004 तक पांच लोकसभा चुनाव जीते। इस सीट पर अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सांसद हैं। राजनाथ ने पिछले दो चुनाव यहां से जीते हैं और तीसरी बार फिर से मैदान में जमे हुए हैं।

चरणसिंह की बागपतः 47 साल बाद परिवार बाहर

1977 में चौधरी चरण सिंह बागपत से लोकसभा चुनाव जीते और 1979 में प्रधानमंत्री बने। चरण सिंह बागपत से 1980 व 1984 में जीते। इसके बाद उनके पुत्र अजीत सिंह ने अलग-अलग दल व निर्दलीय लड़ते हुए 1989 से 1997 तक लगातार चार चुनाव जीते, लेकिन 1998 में भाजपा के सोमनाथ से वह हार गए। 1999 से 2009 तक अजीत सिंह ने फिर तीन चुनाव लगातार जीते, लेकिन 2014 में मोदी लहर में उनको हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उनके पुत्र जयंत सिंह ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के सत्यपाल सिंह से हार गए। जयंत सपा की मदद से राज्यसभा सांसद बन गए। अब उन्होंने सपा का साथ छोड़ एनडीए से नाता जोड़ लिया। अब उनकी पार्टी से राजकुमार सांगवान चुनाव लड़ रहे हैं। 1977 के 47 साल बाद यह पहला मौका है जब चरण सिंह परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं है।

चंद्रशेखर की बलियाः अब बेटा मैदान में

चंद्रशेखर बलिया सीट से अलग-अलग दलों में रहते हुए आठ बार सांसद रहे। 1990 में प्रधानमंत्री बने। वहीं इसी सीट से उनके पुत्र नीरज शेखर समाजवादी पार्टी से सांसद रह चुके हैं। फिलहाल वह भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं। भाजपा ने उनकी परंपरागत सीट बलिया से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। उनके मुकाबले में सपा ने फिलहाल उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।

नंदा के सांबरकाठा में कांग्रेस के पास तोड़ नहीं

देश के दो बार अंतरिम प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा गुजरात के सांबरकाठा से तीन बार कांग्रेस से सांसद रहे हैं। उनकी इस सीट पर भाजपा लगातार दो बार से जीत रही है। कांग्रेस को भाजपा का कोई तोड़ नहीं दिख रहा है। गौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत के बाद नंदा देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे हैं।

वीपी सिंह की फतेहपुरः साध्वी निरंजन की ज्योति

बोफोर्स तोप घोटाले के आरोप लगाकर कांग्रेस से अलग हुए वीपी सिंह ने जनता दल से 1989 में फतेहपुर से लोकसभा चुनाव जीता और प्रधानमंत्री बने। वह दो बार यहां से सांसद रहे हैं। फिलहाल भाजपा ने अपनी जड़ें मजबूत जमा ली हैं। यहां से साध्वी निरंजन ज्योति लगातार दो चुनाव जीत चुकी हैं और तीसरी बार मुकाबले में डटी हैं। सपा ने अभी उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।

नरसिम्हा राव की नंदयालः दो बार से वायएसार कांग्रेस

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