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President Election :ममता बनर्जी अचानक द्रौपदी मुर्मू की वकालत क्यों कर रहीं?

Published: Jul 04, 2022 03:36:14 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

Mamata Banerjee: NDA की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर ममता बनर्जी के रुख में बदलाव देखने को मिला। उन्होंने कहा कि विपक्ष के साथ इस नाम पर चर्चा की गई होती तो वो इसपर विचार करते। ममता बनर्जी के रुख में इस बदलाव से विपक्ष की एकता कठघरे में है, जबकि इस स्टैंड के पीछे ममता बनर्जी का डर भी है। समझेंगे विस्तार से …

Mamata Banerjee batting for NDA presidential candidate Murmu, know why

Mamata Banerjee batting for NDA presidential candidate Murmu, know why

राष्ट्रपति चुनावों को विपक्ष के लिए काफी अहम माना जा रहा है। इसके जरिए विपक्ष अपनी एकजुटता भी NDA के खिलाफ दिखाने में जुटा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष को एकजुट करने के लिए पहल करते हुए न केवल विपक्षी दलों की बैठक बुलाई, बल्कि चर्चा के बाद अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा कर दी। इसके बाद मोदी सरकार ने आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाकर बाजी ही पलट दी। इस घोषणा ने ममता बनर्जी को भी पशोपेश में डाल दिया है जो अचानक कह रही हैं कि NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के चुनाव में जीतने की संभावना अधिक है। आखिर ममता बनर्जी के इस रुख का क्या अर्थ है? अचानक ममता बनर्जी को यशवंत सिन्हा से अधिक मुर्मू के जीत की चिंता क्यों हो रही है?

वास्तव में बीजेपी ने अपना उम्मीदवार काफी सोच समझकर चुना था। इसके पीछे का उद्देश्य ही कई राज्यों के आदिवासी वोटबैंक को अपने पक्ष में करने की थी। ये बात विपक्ष भी अच्छे से समझता है और कोई भी खुलकर मुर्मू का विरोध नहीं कर रहा। यहाँ तक कि बसपा ने भी अपना खुला समर्थन दिया है। हालांकि, ममता बनर्जी के पास कोई ऑप्शन ही नहीं है कि वो खुलकर मुर्मू का समर्थन कर सकें लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर वो ऐसा करती हुई दिखाई दे रहीं हैं जिससे विपक्षी एकता पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। इसके पीछे की वजह पश्चिम बंगाल का आदिवासी वोट बैंक बताया जा रहा है।


पश्चिम बंगाल में इसी वोट बैंक के दम पर बीजेपी ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 18 सीटें जीती थीं। जंगलमहल की सभी लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, यहाँ आदिवासी वोटर्स का प्रभाव काफी अधिक है। पूरे बंगाल की बात करें तो यहाँ 7-8 फीसदी आदिवासी वॉटर्स हैं और इनमें भी 80 फीसदी आबादी संथालियों की है और द्रौपदी मुर्मू इसी संथाल समुदाय से आती हैं। ऐसे में ममता बनर्जी को डर है कि कहीं मुर्मू के खिलाफ जाना उनपर भारी न पड़ जाए।
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NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ कुछ न बोलने के कारण ममता बनर्जी कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के टारगेट पर हैं। वहीं ममता बनर्जी अपने किये कराए पर पानी नहीं फेरना चाहती क्योंकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने अपनी खोई जमीन फिर हासिल की थी।

बता दें कि पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग, कलिमपांग, अलीपुरदुआर, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, उत्तरी और दक्षिणी दिनाजपीर और मालदह जिलों में आदिवासी वोटर्स अहम भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा जंगलमहल के बांकुरा, पुरुलिया, झाड़ग्राम और पश्चिमी मिदनापुर जिलों में भी इनकी जनसंख्या अधिक है। पश्चिम बंगाल की 240 विधानसभा सीटों में से कुल 66 सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं। इनमें भी कुल 16 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भले ही बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन विधानसभा चुनावों में ममता की पार्टी ने झारग्राम और मिदनापुर में भी 13 सीटें जीतकर हुए नुकसान की भरपाई की थी। इस जीत के बाद ममता बनर्जी अब फिर से आदिवासी समुदाय को नाराज करने के मूड में नहीं हैं।

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