मानसून क्या होता है? (What is Monsoon)
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। अरब के समुद्री व्यापारियों ने समुद्र से स्थल की ओर या इसके विपरीत चलने वाली हवाओं को ‘मौसिम’ कहा, जो आगे चलकर ‘मानसून’ कहा जाने लगा। दरअसल मानसून वे हवाएं हैं, जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बदल जाती है। महासागरों की ओर से चलने वाली तेज हवाओं की दिशा में बदलाव को मानसून कहा जाता है।
मानसून से न केवल बारिश ही नहीं होती, बल्कि अलग इलाकों में ये सूखा मौसम भी बनाता है। हिन्द महासागर और अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली ये विशेष हवाएं, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। भारत में मानसून सबसे पहले केरल में पहुंचता है। जहां से धीरे-धीरे यह पूरे देश में सक्रिय होता है।
भारत में 1 जून से 15 सितंबर तक सक्रिय रहता है मानसून
मानसून दक्षिण एशिया में जून से सितंबर तक सक्रिय रहती है। भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है। जब ये हवाएँ भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर पश्चिमी घाट से टकराती हैं तो भारत तथा आस-पास के देशों में भारी वर्षा होती है।
लोगों को गर्मी से निजात मिलती है। किसान खरीफ फसल की तैयारी शुरू करते हैं। मानसून भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है।
मानसूनी हवाओं के दो प्रकार है-
गर्मी का मानसून- यह अप्रैल से सितंबर तक चलता है।
सर्दी का मानसून- जो अक्टूबर से मार्च तक चलता है।
भारत में बारिश करने वाला मानसून दो शाखाओं में बंटा है-
1. अरब सागर का मानसून
2. बंगाल की खाड़ी का मानसून
बीते 5 साल केरल में कब पहुंचा मानसून
साल 2022 | 29 मई |
साल 2021 | 1 जून |
साल 2020 | 1 जून |
साल 2019 | 8 जून |
साल 2018 | 29 मई |
इस साल 8 या 9 जून को मानसून करेगा प्रवेश
इस साल केरल तक मानसून 8 या 9 जून को पहुंच सकता है। मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट (Skymet) का मानना है कि मानसून पर अल नीनो का भी प्रभाव देखने को मिल सकता है। इसके अलावा एक विशाल चक्रवात भूमध्यरेखीय अक्षांश और दक्षिणी प्रायद्वीप में दक्षिण हिंद महासागर के ऊपर बढ़ रहा है। इस कारण मानसून का बहाव रुक रहा है। इसी कारण मानसून में देरी हो रही है।
कैसे तय होता है मानसून की एंट्री
मानसून की एंट्री का फैसला भारतीय मौसम विज्ञान विभाग करता है। जब केरल, लक्षद्वीप और कर्नाटक में लगातार बारिश होनी शुरू हो जाती है तो मानसून के प्रवेश की घोषणा होती है। मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक के 8 स्टेशनों में लगातार दो दिनों तक कम से कम 2.5 एमएम बारिश होती रहती है तब मानसून की एंट्री मान ली जाती है।
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मानसून में देरी का क्या होगा असर
मानसून कृषि और अर्थव्यवस्था दोनों पर बराबर असर डालता है। मानसून खराब रहने से देश के विकास और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। खराब मानसून तेजी से बढ़ती उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को कमजोर करता है। साथ ही आवश्यक खाद्य वस्तुओं के आयात को बढ़ावा देता है। साथ ही सरकार को कृषि कर्ज छूट जैसे उपायों को करने के लिए भी मजबूर करता है। इससे सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ जाता है।
मानसून में देरी से किसानों को झटका
खराब मानसून या मानसून में देरी का सबसे ज्यादा असर कृषि उत्पादों पर पड़ता है। अगर पैदावार प्रभावित होती है तो महंगाई बढ़ना तय है। इससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के सरकार के प्रयासों को करारा झटका लग सकता है। भारत का करीब 60 फीसदी इलाका आज भी सिंचाई के लिए मानसून पर ही निर्भर है। ऐसे में मानसून में देरी या कम बारिश कृषि क्षेत्र पर बुरा असर डालती है।
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