Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Muslim Marriage: मुस्लिम लड़कियों की भी कच्ची उम्र में नहीं हो सकती शादी, HC ने सुनाया बड़ा फैसला

Muslim Marriage: याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को कोर्ट ने नहीं माना कि इस्लामी कानून के तहत मुस्लिम लडक़ी के पास 'खियार-उल-बुलुग' (यौवन का विकल्प) है, जो उसे 15 साल की उम्र में शादी का अधिकार देता है।

less than 1 minute read
Google source verification

Muslim Marriage: केरल हाईकोर्ट ने अहम फैसला में कहा कि हरेक भारतीय नागरिक, चाहे उसका धर्म और स्थान कुछ भी हो, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का पालन करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 10 और 11 के तहत दंडनीय बाल विवाह के अपराध के लिए कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई थी।

जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा, देश के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की प्राथमिक दशा धर्म से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। जब अधिनियम 2006 बाल विवाह को प्रतिबंधित करता है तो यह मुस्लिम पर्सनल लॉ को पीछे छोड़ देता है। यह विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है। याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को कोर्ट ने नहीं माना कि इस्लामी कानून के तहत मुस्लिम लडक़ी के पास 'खियार-उल-बुलुग' (यौवन का विकल्प) है, जो उसे 15 साल की उम्र में शादी का अधिकार देता है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट बाल विवाह रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी कर सकते हैं। अधिनियम की धारा 13 के तहत ऐसी शिकायतों/सूचनाओं पर कार्रवाई करने के लिए उनके पास स्वप्रेरणा से अधिकार हैं।

कम उम्र में शादी से समस्याएं कम नहीं

बाल विवाह की बुराइयों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विवाह से बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। बच्चों का शोषण होता है। कम उम्र में गर्भधारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करता है। बाल विवाह लड़कियों को स्कूल छोडऩे पर मजबूर करता है, गरीबी बढ़ाता है और आर्थिक अवसरों को सीमित करता है। बाल वधुएं घरेलू हिंसा की चपेट में आती हैं, जिससे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात होता है। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह रोकना हरेक नागरिक का कत्र्तव्य है।