रविशंकर का कहना है कि अगर पिछले साल यमुना नदी के किनारे आयोजित तीन दिन के सांस्कृतिक महोत्सव से पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान हुआ है तो इसकी जिम्मेवारी उनकी नहीं बल्कि सरकार और अदालत की है। इस कार्यक्रम की इजाजत वहीं मिली थी।
प्राधिकरण ने गुरुवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए रविशंकर को जमकर फटकार लगाते हुए कहा कि संस्था का रवैया बहुत गैर जिम्मेदाराना है और उसे इस बात की छूट नहीं है कि जो उसके मन आए वह बोले। इस मामले की अगली सुनवाई 9 मई को होगी।
प्राधिकरण ने कहा कि श्री श्री रविशंकर ने प्राधिकरण की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर पूर्वाग्रह के जो आरोप लगाए है वह चौंकाने वाले है। श्री रविशंकर ने फेसबुक पर मंगलवार को लिखा था कि यदि विश्व सांस्कृतिक महोत्सव से पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचा तो इसके लिए एनजीटी और सरकार को ही जिम्मेदार ठहराना चाहिए।
श्रीश्री रविशंकर से मिले बुरहान वानी के पिता, बोले- इलाज के लिए गया था आश्रम में उन्होंने प्राधिकरण पर नैसर्गिंक न्याय के सिद्धांतों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि इस ऐतिहासिक कार्यक्रम को अपराध की तरह पेश किया जा रहा है। एनजीटी ने याचिकाकर्ता से आध्यात्मिक गुरू के बयान का व्यापक ब्यौरा देने के लिए कहा है जिससे उसके बयान को रिकॉर्ड पर लिया जा सके।
प्राधिकरण की विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कार्यक्रम से यमुना के ईर्द-गिर्द हुए नुकसान की भरपाई पर 13.29 करोड़ रुपए खर्च होंगे और 10 वर्ष का समय लगेगा।
आर्ट ऑफ लिविंग को झटका, NGT ने ठुकराया बैंक गारंटी प्रस्ताव, जमा कराने होंगे 4.75 करोड़ रिपोर्ट के मुताबिक नदी के दाएं किनारे पर करीब 120 हैक्टेयर और बाएं तीरे पर लगभग 50 हैक्टेयर जमीन को बहुत नुकसान हुआ है और कार्यक्रम के कारण जमीन की उपजाऊ क्षमता लगभग खत्म हो गई है।
47 पेज की रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि इस जमीन को उतना अधिक नुकसान हुआ है कि अब इसमें घास या पेड़ भी लगाना बहुत मुश्किल है जबकि पहले यहां कई तरह के जानवर और छोटे जीव वास करते थे।