ये है इतिहास अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए 4 जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया कि यदि अंग्रेज भारत नहीं छोड़ते हैं तो उनके ख़िलाफ़ व्यापक स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए।
इस प्रस्ताव को लेकर हालांकि पार्टी के भीतर मतभेद पैदा हो गए और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी। पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद प्रस्तावित आंदोलन को लेकर शुरूआत में संशय में थे। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर इसके समर्थन का फैसला किया।
उधर सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. राजेंद्र प्रसाद यहां तक कि अशोक मेहता और जयप्रकाश नारायण जैसे वरिष्ठ गांधीवादियों और समाजवादियों ने इस तरह के किसी भी आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। आंदोलन के लिए कांग्रेस को हालांकि सभी दलों को एक झंडे तले लाने में सफलता नहीं मिली। मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिन्दू महासभा ने इस आह्वान का विरोध किया। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया।
लंबी जद्दोजहद के बाद आखिर देश को आज़ादी मिली। स्वतंत्र भारत का खुद का संविधान बना। यहां के नागरिकों को कई तरह के अधिकार दिए गए। लेकिन जिस भारत देश की उस वक्त कल्पना की गई थी उस तरह के भारत में कई तरह के आमूलचूल बदलाव हुए। विदेशी ताकतों से जंग जीतने वाला देश अंदरूनी झगड़ों में उलझता गया।
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सवाल – हमें क्रांति चाहिए? क – शिक्षा व रोजगार के लिए ख – भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए ग – जातिवाद से मुक्ति के लिए घ – सांप्रदायिकता के खिलाफ