इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल पी.एस. नरसिम्हा ने कोर्ट में माना कि वर्ष 2016 में राजस्थान पत्रिका को सरकारी विज्ञापन जारी नहीं हुए हैं, लेकिन राज्य सरकार अब विज्ञापन जारी करने को तैयार है और अगले चार सप्ताह में ऐसा करके दिखा देगी। सुप्रीम कोर्ट ने नरसिम्हा को राज्य सरकार की ओर से दी गई इस मौखिक गारंटी को चार सप्ताह में साबित करने का समय देते हुए कहा कि यदि सरकार ऐसा नहीं करे तो याचिकाकर्ता यदि जरूरत हो तो अगले सात से दस दिन में ही फिर हमारे पास आ सकते हैं।
पत्रिका की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को खंडपीठ ने स्वीकार किया जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार अपनी ही विज्ञापन नीति का उल्लंघन कर राजस्थान पत्रिका को विज्ञापन जारी करने में पक्षपात कर रही है। सिंघवी ने आंकड़े पेश कर बताया कि वर्ष 2015 में जहां राजस्थान पत्रिका को 34.12 प्रतिशत सरकारी विज्ञापन मिले थे वे वर्ष 2016 में केवल 1.26 प्रतिशत रह गए।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि राजस्थान पत्रिका की प्रसार संख्या प्रतिदिन 16 लाख प्रतियों से अधिक है, ऐसे में विज्ञापन नहीं देने से सरकार लोगों को सूचना पाने के अधिकार से भी वंचित कर रही है। पिछली सुनवाई में याचिका कर्ताओं की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि कोर्ट सरकार को समाचार-पत्र को दंडित करने की अनुमति नहीं दे सकती है। उन्होंने सवाल उठाया था कि यदि ऐसा होता है तो कोई समाचार-पत्र कैसे चल सकता है। अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल पी.एस. नरसिम्हा ने कोर्ट में माना कि वर्ष 2016 में राजस्थान पत्रिका को सरकारी विज्ञापन जारी नहीं हुए हैं।