जीवनी में खुलासा
रतन टाटा के निधन के बाद नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया। यह ट्रस्ट अप्रत्यक्ष रूप से 165 अरब अमरीकी डॉलर के टाटा समूह को नियंत्रित करता है। किताब में बताया गया कि मार्च 2011 में रतन टाटा के उत्तराधिकारी की तलाश के लिए कई उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया गया। उनमें नोएल टाटा शामिल थे। रतन टाटा ने उत्तराधिकारी तलाशने के लिए बनी चयन समिति से दूर रहने का फैसला किया था। बाद में उन्हें इस फैसले पर पछतावा हुआ। चयन समिति से खुद को रखा दूर
किताब के मुताबिक रतन टाटा चयन समिति से इसलिए दूर रहे, क्योंकि टाटा समूह के भीतर से कई उम्मीदवार थे। वह भरोसा देना चाहते थे कि सामूहिक निकाय सर्वसम्मति से फैसले के आधार पर उनमें से किसी एक की सिफारिश करेगा। दूसरा कारण व्यक्तिगत था। व्यापक रूप से माना जाता था कि नोएल टाटा उनके उत्तराधिकारी के लिए स्वाभाविक उम्मीदवार थे। कंपनी में पारसियों और समुदाय के परंपरावादियों की ओर से दबाव के बीच नोएल टाटा को ‘अपना’ माना जाता था।
बचपन के अकेलेपन से लेकर चेयरमैन बनने की यात्रा
किताब में रतन टाटा के बचपन के अकेलेपन से लेकर 1991 में टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन बनने की यात्रा का विस्तार से विवरण दिया गया है। इसमें रतन टाटा की नैनो परियोजना, टाटा स्टील लिमिटेड द्वारा किए गए अधिग्रहण, साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने आदि का वह ब्योरा शामिल है, जो पहले प्रकाशित नहीं हुआ।
पुत्र को भी अपने आप नहीं मिलती विरासत
किताब के मुताबिक रतन टाटा के लिए सिर्फ व्यक्ति की प्रतिभा और मूल्य मायने रखते थे। वह नहीं चाहते थे कि नोएल को न चुने जाने की हालत में उन्हें उनके विरोधी के रूप में देखा जाए। रतन टाटा ने कहा था कि अगर उनका कोई पुत्र भी होता तो वह कुछ ऐसा करते कि वह अपने आप उनका उत्तराधिकारी नहीं बन पाता।