हिंदू एकता सबसे पहले
संघ द्वारा बताया गया की इस समय समाज की कुछ बड़ी समस्याओं के लिए तुरंत विशेष रूप से ध्यान देकर सामाजिक परिवर्तन के काम भी शुरू किए गए हैं। धर्मजागरण विभाग के माध्यम से हिन्दू समाज को कन्वर्ट करने के चल रहे कुंठित योजनाबद्ध प्रयासों को विफल करना तथा वे कनवर्टेड लोग जो फिर से अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ना चाहते हैं, उनके लिए मार्ग आसान करने का काम हुआ।
केंद्सर रकार पर निर्भर न रहते हुए अपने गांव का विकास सभी ग्रामवासी मिलकर करेंगे, सरकारी योजनाओं का आवश्यक उपयोग करते हुए ग्राम का सर्वांगीण विकास हम सब मिलकर करेंगे, इस उद्देश्य से ग्राम-विकास का कार्य आरम्भ हुआ।
हमारा हिन्दू समाज विभिन्न जातियों के नाम से जाना जाता रहा है। परन्तु जातीय विद्वेष बढ़ाकर जातिभेदों में समाज को बांटने का काम भी कुछ धर्म विरोधी लोग करते रहे हैं। सामाजिक सद्भाव बैठकों के माध्यम से सभी ने एकत्र बैठ कर कुछ सांझी समस्याओं और चुनौतियों के बारे में विचार करना तथा उससे उबरने के सामूहिक प्रयास करने की दृष्टि से सामाजिक सद्भाव बैठकों की श्रृंखला शुरू हुई।
हमारे ही समाज के कुछ वर्ग को अछूत कहकर शिक्षा, सुविधा और सम्मान से दुर्भाग्य से वंचित रखा गया। यह सरासर अन्यायपूर्ण था। इस अन्याय को दूर कर अपनी सांझी विरासत को याद कराते हुए सब को साथ लेकर आगे बढ़ने के प्रयास सामाजिक समरसता के माध्यम से आरम्भ हुए। यानी संघ जातियों में बंट चुके समाज को एक करने का अभियान अब तेज करने वाली है और इसकी शुरुआत वो बहुत ही जल्द करेंगे।
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समर्थवान लोगों से आगे आने की अपील की
संघ के समन्वय बैठक में सामाजिक समरसता अभियान को और तेज करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि कुछ ऐतिहासिक कारण रहे, जिससे समाज में छोटे और बड़े का भेद आया, जबकि परमात्मा और संविधान के सामने सभी समान है। कहने का अर्थ यह है की जब उपर वाले हमरे साथ कभी भेद भाव नहीं करते तो हम इस तरह का पाप क्यों कर रहे हैं।
हम सभी के महापुरुष और सभी के पर्व-त्योहार एक जैसे हैं। जातीय भेदभाव समाप्त करने के लिए सामाजिक समरसता की गतिविधियां और तेज होंगी। आरएसएस ने इसके लिए समाज के समर्थवान लोगों से आगे आने की अपील की है। 100 वर्ष पूरे होने तक संघ के स्वयंसेवक पूरे तन मन धन से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जुटे हैं। इसमें वो कितना सफल हो पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।