कानून नहीं बनाने तक कायम रहेगी समिति-
न्यायमूर्ति के.एम. जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह समिति तब तक रहेगी जब तक संसद इस संबंध में कानून नहीं बना देती। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना होगा। एक कमजोर चुनाव आयोग के परिणामस्वरूप कपटपूर्ण स्थिति पैदा होगी और आयोग की कुशलता प्रभावित होगी।
लोकतंत्र लोगों की शक्ति से जुड़ा मामलाः सुप्रीम कोर्ट-
शीर्ष अदालत का फैसला चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए आया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और कानूनी तरीके से कार्य करने और संविधान के प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य है। पीठ ने कहा कि लोकतंत्र लोगों की शक्ति के साथ जुड़ा हुआ है और एक आम आदमी के हाथों में शांतिपूर्ण बदलाव की सुविधा प्रदान करता है।
सरकार के दवाब में काम करने का लगता रहता है आरोप-
बताते चले कि कई बार चुनाव के समय विपक्षी दल यह आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग सरकार के दवाब में काम कर रही है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव के बाद विपक्षी दलों द्वारा आरोप लगाने की इस चलन में कमी आएगी। क्योंकि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया नेता प्रतिपक्ष भी खुद शामिल होंगे।
अरुण गोयल की नियुक्ति के समय बढ़ा था विवाद-
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में याचिकाकर्ता अनूप बरांवल ने अपनी याचिका में चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में भी कॉलेजियम सिस्टम को लागू करने की मांग की थी। 23 अक्टूबर 2018 को इस मामले को 5 जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया गया था। आपको बता दें कि बीते साल 19 नवंबर को केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के IAS अफसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया था। इसके बाद विवाद बढ़ गया था।
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