ये हैं भारत से फ्रांस जा कर वहां साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय योगदान देने वाली मशहूर साहित्यकार सरस्वती जोशी (saraswati joshi)। वे ‘विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा’ की ओर से आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्यिक सम्मेलनों’ आदि के अवसरों पर ‘विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा’ से ‘विश्व हिंदी साहित्य रथी’, ‘विश्व हिंदी कथा-शिल्पी’, ‘विश्व हिंदी साहित्य-स्तंभ’ व ‘विश्व हिंदी साहित्य-शिरोमणि’, ‘ग्लोबल हिंदी साहित्य शोध संस्थान, भारत’ की ओर से ‘प्रवासी भारत रत्न’, और ‘ग्लोबल हिंदी ज्योति, कैलिफोर्निया, अमरीका’से ‘हिंदी साहित्य व भाषा गौरव’ सम्मान से सम्मानित हैं।
•Mar 02, 2024 / 04:06 pm•
M I Zahir
मशहूर साहित्यकार सरस्वती जोशी सोर्बोन विश्वविद्यालय से जुड़े प्रसिद्ध प्राच्य भाषा व सभ्यता संस्थान इनाल्को के दक्षिण एशिया विभाग में विदेशी भाषा की तरह हिंदी के अध्यापन के लिए ‘रेपेतीतरीस’, ‘मेत्र दे लांग एतरांजेर’, ‘असिस्तांत द आँसेन्यमाँ सुपीरियर’, और फिर ‘मेत्र दे कोंफेराँस’ नियुक्त हुईं । फ़्रांस सरकार द्वारा इन्हें सांस्कृतिक व साहित्यिक सेवाओं के लिए ‘शेवालिए दे पाल्म अकादेमिक’ (नाइट) की उपाधि से नवाज़ा गया ।
सरस्वती जोशी प्रोफेसर निकोल बलबीर के संपादन में रचित ‘हिदी-फ़्रांसीसी सामान्य शब्दकोश’ व प्रोफेसर आनी मोंतों के साथ हिंदी के अध्यापन के लिए उपयुक्त पुस्तक ‘पार्लों-हिन्दी’ में सहयोगी रहीं ।
सरस्वती जोशी के ‘अपराजिता’, ‘मूक-साधना’, ‘ शतरंगी लहरें’, ‘वाणी के स्वर’, तथा ‘आँचल के बिखरे मोती’ नामक काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं ।
सरस्वती जोशी ने प्रोफेसर जां ल्युक शाम्बार के निर्देशन में करीब 800 पृष्ठों का फ़्रांसीसी भाषा में ‘राजस्थानी हिंदू नारी की धार्मिक साधनाएँ’ नामक शोध-प्रबंध लिखा तथा इनको ‘माँशियों त्रे ओनोराब्ल’ से पी.एच.डी. की उपाधि मिली ।
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