दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है। मान्यता है कि महर्षि ऋयश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न विष्णु ने नृसिंह रूप में दर्शन दिए। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह यहीं तीन रूपों में विराजित हो गए।
तिरुपति की तर्ज पर भव्य रूप –
आंध्र प्रदेश से अलग होने पर तिरुपति मंदिर तेलंगाना के हिस्से में नहीं आया था। दो साल पहले तेलंगाना सरकार ने पौराणिक महत्त्व के यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर को 1800 करोड़ से तिरुपति मंदिर की तर्ज पर भव्य रूप दिया। हैदराबाद से करीब स्थित यदाद्री भुवनगिरी जिले के इस मंदिर के कायाकल्प के लिए इंजीनियरों ने करीब 1500 नक्शों व योजनाओं पर काम किया।
सभी दीवारें और द्वार चांदी के-
ग्रेनाइट पत्थर से बना यह देश का सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिर में ऐसा ग्रेनाइट पत्थर इस्तेमाल किया गया, जिसका मूल स्वरूप एक हजार साल तक नहीं बदलेगा। इसके सभी द्वार और दीवारें चांदी जडि़त हैं। इसके लिए करीब 1,753 टन चांदी इस्तेमाल की गई। 9 एकड़ में फैले इस मंदिर के विस्तार के लिए 2016 में 300 करोड़ में 1900 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई।