‘सुप्रीम कोर्ट नहीं परख सकता मुस्लिम पर्सनल लॉ की वैधता’
Published: Feb 06, 2016 11:23:00 pm
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्रचलित
शादी, तलाक और गुजारा भत्ते के चलन की संवैधानिक वैधता को परखने के प्रयास
का विरोध किया है।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्रचलित शादी, तलाक और गुजारा भत्ते के चलन की संवैधानिक वैधता को परखने के प्रयास का विरोध किया है।
संस्था ने अपने आवेदन में तर्क दिया है कि कानूनों को मौलिक अधिकारों के सहारे चुनौती नहीं दी सकती। मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर सुनवाई में पक्षकार बनने के लिए जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को पक्षकार बनने की इजाजत देते हुए छह सप्ताह में संस्था को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।
जमीयत का यह भी कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान आचार संहिता की बात करता है लेकिन यह अनुच्छेद सिर्फ राज्य के नीति निदेशक तत्वों में दिया गया है। इसे लागू नहीं कराया जा सकता।