25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि चंडीगढ़ पीजीआई के मेडिकल बोर्ड से बच्ची की जांच कराई जाए। जिसके बाद सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का संज्ञान लिया। अदालत ने रिपोर्ट शुक्रवार तक दाखिल करने को कहा था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग लड़की की मेडिकल देखभाल पर संतोष बी किया।
इस दौरान कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव देते हुए मौजूद सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि देश के प्रत्येक राज्य में ऐसे मामलों में तत्परता से निर्णय लेने के लिए स्थाई मेडिकल बोर्ड गठित करें। हालांकि कोर्ट के संज्ञान में यह बात आई थी कि लड़की 26 सप्ताह की गर्भवती है। जिसके बाद वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
10 साल की नाबालिग लड़की के साथ उसके मामा ने कई बार रेप किया था जिसके बाद वो गर्भवती हो गई, लेकिन इसके बारे में जब पता चला तब तक गर्भ 20 हफ्ते से ज्यादा का हो चका था। इसके बाद कहीं से इजाजत न मिलने पर बच्ची की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
गौरतलब है कि अदालत गर्भपात समापन कानून के तहत 20 हफ्ते तक के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देता है। तो वहीं यह आदेश भ्रूण के असमान्य होने की स्थिति में अपवाद के तौर पर भी आदेश जारी कर सकता है।