पति की तरफ से पहला तलाक पा चुकी गाजियाबाद की बेनजीर हिना की याचिका जल्द सुनने की मांग पर चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मामले को तुरंत सुनवाई के लिए लगाना जरूरी नहीं है। सीजेआई ने कोई भी तिथि देने से इनकार करते हुए कहा, "यह क्या है, इसमें क्या अरजेंसी है?" बता दें वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने मुख्य न्यायाधीश को याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग के लिए पत्र लिखा था। याचिका में तलाक-ए-हसन व ऐसी अन्य प्रक्रिया को अवैध ठहराने व रद्द करने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक यानी की तलाक-ए-बिद्दत को भले ही असंवैधानिक घोषित कर दिया था, मगर तलाक के दूसरे प्रकार अभी भी वैध हैं और वे पूर्व की भांति ही लागू रहेंगे। कहने के मतलब यह है की पति यानी की शौहर कुरान के मुताबिक एक-एक माह के अंतराल पर तीन बार तलाक कह कर बीवी से संबंध खत्म कर सकता है। यानी की तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक, अवैध या आपराधिक घोषित नहीं किया गया है। जिस कारण से गाजियाबाद की बेनजीर हिना ने कोर्ट में याचिका दायर की है।
याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि बेनज़ीर को 19 अप्रैल को पहला तलाक मिल चुका है। बेनज़ीर की याचिका में यह मांग भी की गई है कि मुस्लिम लड़कियों को तलाक के मामले में बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए। याचिका में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नजर में समानता और सम्मान से जीवन जीने जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दिया जाए।