न्यायमूर्ति एसके कौल ने गृह मंत्रालय से कहा, "न्यायपालिका न बताएं कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। हम उसे सहजता से नहीं लेंगे जिस चीज को आपको करना चाहिए उसे तय करने के लिए आप अदालत को कहें।" न्यायाधीश ने कहा, "गृह सचिव कोई नहीं है जो हमें इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए कहे।" सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र को स्पष्ट होना चाहिए कि वे क्या कहना चाहती है। न्यायाधीशों ने कहा, "हमें गृह मंत्रालय के हलफनामे में 'हम उचित समय पर निर्णय लेंगे' जैसे वाक्य पसंद नहीं हैं।"
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि सरकार के लिए अबू सलेम के मामले पर फैसला लेने का 'यह उचित समय नहीं है'। दो देशों के बीच की संधि का ख्याल रखने का काम सरकार का है, अदालत का नहीं, अदालत केवल सलेम के जुर्म से जुड़े तथ्यों के आधार पर फैसला दे।" केंद्र के इसी हलफनामे से सुप्रीम कोर्ट भड़क गया।
दरअसल, जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश 1993 के बॉम्बे ब्लास्ट मामले में एक दोषी अबू सलेम की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, कि भारत ने पुर्तगाल की अदालतों को गारंटी दी थी कि उसकी जेल की सजा 25 साल से अधिक नहीं हो सकती।
मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पुर्तगाल सरकार को दिए गए आश्वासन पर बाध्य है कि अबू सलेम को दी गई कोई भी सजा 25 साल से अधिक नहीं होगी। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि यह आश्वासन 25 साल की अवधि 10 नवंबर, 2030 को समाप्त होने के बाद लागू होगा।
मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पुर्तगाल सरकार को दिए गए आश्वासन पर बाध्य है कि अबू सलेम को दी गई कोई भी सजा 25 साल से अधिक नहीं होगी। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि यह आश्वासन 25 साल की अवधि 10 नवंबर, 2030 को समाप्त होने के बाद लागू होगा।
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