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SC की 5 सदस्यीय पीठ तय करेगी समलैंगिकता क्राइम है या नहीं?

Published: Feb 02, 2016 06:32:00 pm

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सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता मामले में दायर सभी संशोधन याचिकाओं को मंगलावर को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता मामले में दायर सभी संशोधन याचिकाओं को मंगलावर को संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन एवं अन्य के वकीलों की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद कहा कि इन याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जाता है। याचिकाकर्ताओं ने 2014 के प्रारंभ में ही संशोधन याचिकाएं दायर की थीं और शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि वह अपने आदेश में संशोधन करे। 

दिल्ली हाई कोर्ट ने किया था अपराधमुक्त
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया था, लेकिन शीर्ष अदालत ने फैसला पलटते हुए धारा 377 बरकरार रखी थी। संशोधन याचिकाओं में उसके दिसंबर 2011 और जनवरी 2014 के फैसले को चुनौती दी गई है। 

क्या कहती है IPC की धारा 377
करीब 153 साल पुराने इस कानून के तहत अगर दो व्यक्ति आपसी रजामंदी से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो वह गैर-कानूनी होगा और उसके लिए उम्रकैद की सजा हो सकती है। यह कानून केवल समलैंगिकों की बात नहीं करता है, बल्कि यह बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन हिंसा को मद्देनजर रखते हुए बनाया गया था लेकिन वयस्कों में दो पुरुषों या महिलाओं या समलैंगिकों के बीच सहमति से बनाया गया यौन संबंध भी कानूनी परिभाषा में अप्राकृतिक समझे जाने की वजह से इस कानून के दायरे में आ गया।

सुप्रीम कोर्ट ने बदला था हाई कोर्ट का फैसला
ऐसे संबंधों को वैधता देने के लिए ही साल 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी और उच्च न्यायालय ने कई साल तक चली सुनवाई के बाद एक ऐतिहासिक आदेश में इस धारा के तहत विशेषकर वयस्कों के बीच समलैंगिक संबधों को कानूनी मान्यता दी भी थी लेकिन कई धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध करते हुए इसको शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी, जिसने उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया था।


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