इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत की बेंच ने कहा, आरोपी को ECIR (शिकायत की कॉपी) देना भी जरूरी नहीं है। यह काफी है कि आरोपी को यह बता दिया जाए कि उसे किन आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को दौरान बेल यानी जमानत की कंडीशन को भी बरकरार रखा है। दाखिल याचिका में बेल की मौजूदा शर्तों पर भी सवाल उठाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क के साथ खारिज की याचिका
शीर्ष अदालत ने इस याचिका को खारिज करने के लिए खास तर्क दिया। कोर्ट ने कहा कि, मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। उसे मूल अपराध के साथ जोड़ कर ही देखने की दलील खारिज की जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए जिन धाराओं को वैध बताया उसमें सेक्शन 18 प्रमुख रूप से शामिल है। इसके साथ ही सेक्शन 19 में हुआ बदलाव भी करार किया है।
सेक्शन 24 भी वैध है साथ ही 44 में जोड़ी गई उपधारा भी सही बताई गई। दरअसल, दायर याचिका में PMLA के कई प्रावधान कानून के खिलाफ बताए गए थे।
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