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World Theatre Day : रंगमंच से मिला आत्मविश्वास तो ऊंचा हो गया ‘कद’, अब सम्मान की दृष्टि से देखते हैं लोग

locationजयपुरPublished: Mar 27, 2023 12:29:28 am

Submitted by:

Aryan Sharma

असम में कम लंबाई के लोगों का ‘अमार गांव’, पढ़ाई, प्रशिक्षण और रोजगार से जीवन को मिली नई दिशा। बदलाव के एम्बेसडर बने एनएसडी स्नातक पबित्र राभा।

World Theatre Day : रंगमंच से मिला आत्मविश्वास तो ऊंचा हो गया 'कद', अब सम्मान की दृष्टि से देखते हैं लोग

World Theatre Day : रंगमंच से मिला आत्मविश्वास तो ऊंचा हो गया ‘कद’, अब सम्मान की दृष्टि से देखते हैं लोग

आर्यन शर्मा @ उदालगुरी. कद भले कम हो, लेकिन जब ये कलाकार मंच पर अभिनय करते हैं तो इनका ‘कद’ बहुत ऊंचा हो जाता है। दर्शक इन कलाकारों की परफॉर्मेंस को स्टैंडिंग ओवेशन देते हैं। इनके साथ सेल्फी क्लिक करते हैं। असम में टांगला के थिएटर ग्रुप ‘दापोन – द मिरर’ के ये कलाकार कुछ साल पहले तक अपनी कम लंबाई के कारण लोगों से सामान्य बातचीत करने में भी झिझकते थे, लेकिन इनको बतौर गुरु पबित्र राभा का मार्गदर्शन मिला तो इनकी जिंदगी बदल गई। अब ये आत्मविश्वास के साथ मंच पर नाटक परफॉर्म करते हैं।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से स्नातक एक्टर-डायरेक्टर पबित्र ने अपना थिएटर ग्रुप 2003 में शुरू किया था। तब वे बच्चों और युवाओं के साथ काम करते थे। इसी दौरान उनके दिमाग में आया कि क्यों न ड्वॉर्फ (कम लंबाई के व्यक्ति) के साथ काम किया जाए, जिन्हें अक्सर समाज में हाशिए पर रखा जाता है। लोग उन्हें महज सर्कस का जोकर समझते हैं। थिएटर के जरिए पबित्र इनको वह सम्मान दिलाना चाहते थे, जो हर आम आदमी को मिलता है। ऐसे में उन्होंने 2008 में दोस्तों के साथ मिलकर असम के अलग-अलग जिलों में कम कद के लोगों को ढूंढना शुरू किया।
बकौल पबित्र, हम घर-घर गए। उन्हें प्रशिक्षण और आजीविका की पेशकश की। कम लंबाई के लोगों और उनके परिवार को राजी करना आसान नहीं था। 2008 से 2011 के अंत तक करीब चार साल के दौरान ऐसे 70 लोगों से मिले और उनमें से 30 को चुना गया। हमारे पास इतने संसाधन भी नहीं थे कि सब लोगों को अपने साथ ले आएं। सभी आने को तैयार भी नहीं थे। फिर टांगला में इनके साथ 45 दिन की थिएटर वर्कशॉप की, जिसमें चार बिंदुओं सेल्फ, सोसाइटी, फैमिली और एजुकेशन पर फोकस किया। वर्कशॉप से इनमें आत्मविश्वास आया। फिर इन्हें लेकर पहला नाटक ‘किनो काओ’ किया। इस नाटक में इनके जज्बात, दर्द, महत्वाकांक्षाएं और अच्छा जीवन जीने के सपने को पेश किया।

साथ रहते हैं और खेती-बाड़ी करते हैं
पबित्र ने छह बीघा जमीन पर रेजिडेंशियल सेटअप ‘अमार गांव’ बनाया है, जहां सब साथ रहते हैं और पढ़ाई-लिखाई, रिहर्सल, खेती-बाड़ी, कामकाज करते हैं। थिएटर से आत्मविश्वास मिलने के बाद कुछ लोग वापस अपने घर जाकर बिजनेस भी करने लगे हैं। जब किसी थिएटर प्रोडक्शन पर काम करना होता है तो वे आ जाते हैं। पबित्र के इस नेटवर्क में असम के अलावा 3-4 कलाकार महाराष्ट्र से भी हैं। कई फिल्मों में अभिनय कर चुके पबित्र का कहना है, ‘अमार गांव’ में रहने वाले ये कलाकार जब कोई नाटक या वर्कशॉप नहीं कर रहे होते हैं, तो खेती में समय बिताते हैं। जो उपज होती है, उससे सालभर खर्च चलता है।

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कोशिश से कामयाबी तक…

बदल गया जीवन
कद कम होने से सपने छोटे नहीं होते। खुशी है कि मेरी कोशिश काफी हद तक सफल रही है। अब लोग इन्हें उपहास नहीं, सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। इनका अभिवादन करते हैं और इनके अभिनय की तारीफ करते हैं।
– पबित्र राभा, एक्टर व थिएटर डायरेक्टर

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