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विजय माल्या को भारत लाना इतना आसान नहीं, 3 साल तक लग सकते हैं वापस लाने में

Published: Apr 19, 2017 12:03:00 pm

Submitted by:

santosh

शराब कारोबारी विजय माल्या की गिरफ्तारी की खबर से भारत की कोशिशों को संजीवनी मिली है, लेकिन माल्या को भारत लाना इतना आसान नहीं है।

शराब कारोबारी विजय माल्या की गिरफ्तारी की खबर से भारत की कोशिशों को संजीवनी मिली है, लेकिन माल्या को भारत लाना इतना आसान नहीं है। इसकी वजह है भारत-ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि की जटिल प्रक्रिया। ब्रिटिश सरकार के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कनवेंशन और द्विपक्षीय संधियों के तहत ब्रिटेन दुनिया के करीब 100 मुल्कों के साथ प्रत्यर्पण संधि रखता है। इनमें भारत कैटेगरी-2 के टाइप बी वाले देशों में शामिल है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस प्रक्रिया में एक साल से तीन साल तक लग सकते हैं। 
ब्रिटिश विदेश मंत्रालय और अदालतें करेंगी फैसला

विदेश मंत्री से आग्रह किया जाएगा, जो इस बात का निर्णय करता है कि इसे सर्टिफाई किया जाए या नहीं। जज निर्णय करता है कि गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जाए या नहीं। इसके बाद शुरुआती सुनवाई होगी। फिर बारी आएगी प्रत्यर्पण सुनवाई की। विदेश मंत्री फैसला करता है कि प्रत्यर्पण का आदेश दिया जाए या नहीं। आग्रह करने वाले देश को क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस को आग्रह का शुरुआती मसौदा सौंपने के लिए कहा जाता है, ताकि बाद में दिक्कत न हो।
पहले ब्रिटिश गृह मंत्रालय की इंटरनेशनल क्रिमिनलिटी यूनिट इस आग्रह पर विचार करती है। अगर दुरुस्त पाया जाता है, तो यह आग्रह अदालत को बढ़ा दिया जाता है। अदालत सहमत होती है कि पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराई है, तो गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा। गिरफ्तारी के बाद शुरुआती सुनवाई और प्रत्यर्पण सुनवाई होती है। सुनवाई पूरी होने के बाद जज संतुष्ट होता है तो मामले को विदेश मंत्रालय को बढ़ा दिया जाता है।
बीच में माल्या भी कर सकते हैं अपील

जिसके प्रत्यर्पण पर बातचीत हो रही है, वो शख़्स मामला विदेश मंत्रालय को भेजने के जज के फैसले पर अपील कर सकता है। अगर प्रत्यर्पण के बाद व्यक्तिके खिलाफ सज़ा-ए-मौत का फैसला आने का डर हो तो प्रत्यर्पण रोका जा सकता है। कुछ अन्य कारण भी बाधक बनते हैं।
दो माह में करना होता है फैसला

विदेश मंत्रालय को मामला भेजने के दो महीने के भीतर फैसला करना होता है। ऐसा ना होने पर व्यक्तिरिहा करने के लिए आवेदन कर सकता है। हालांकि विदेश मंत्री अदालत से फैसला देने की तारीख आगे बढ़वा सकता है। यानी विदेश मंत्री की भूमिका अहम होगी।
सुप्रीम कोर्ट का विकल्प

इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी व्यक्ति के पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार रहता है।

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