इन राज्यों में बारिश और बर्फबारी की संभावना
मौसम विभाग के मुताबिक पहला पश्चिमी विक्षोभ 24 मार्च और दूसरा 26-27 मार्च को उत्तर-पश्चिमी और उत्तरी भागों में प्रभावी होने की संभावना है। इसके असर से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड कुछ क्षेत्रों में बर्फबारी होगी। 26 और 27 मार्च को जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और बारिश का अलर्ट जारी किया गया है। उत्तराखंड में 24 से 28 मार्च तक हल्की से मध्यम बारिश और बर्फबारी होने वाली है। इसके अलावा मैदानी इलाकों में 24 मार्च को पश्चिमी और उत्तरी राजस्थान में हल्की बारिश और पंजाब-हरियाणा में तेज हवाएं चलने का अनुमान है।
राजस्थान : तापमान में उतार-चढ़ाव
प्रदेश के तापमान में उतार-चढ़ाव का दौर बना हुआ है। 22 मार्च को फलोदी, बाड़मेर का अधिकतम तापमान 39 डिग्री से पहुंच गया, जालौर, बीकानेर, पिलानी का अधिकतम तापमान 38 डिग्री से ज्यादा रहा। जबकि माउन्ट आबू का न्यूनतम तापमान 11.7 डिग्री तो वहीं अंता-बांरा का न्यूनतम तापमान 14 डिग्री. भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़़, संगरिया का न्यूनतम तापमान 15 डिग्री के आसपास रिकॉर्ड किया गया।
अल नीनो के कारण 2023 में समुद्र के जलस्तर में भारी बढोतरी
जलवायु परिवर्तन के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। हाल ही नासा की रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों से पता चलता है कि समुद्र के सतह की ऊंचाई तेज गति से बढ़ रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में 2022-2023 तक औसत समुद्र स्तर में लगभग 0.3 इंच की बढ़ोतरी हुई, जिसके पीछे गर्म होती जलवायु और शक्तिशाली अल नीनो को कारण माना है। वर्षभर में समुद्र की कुल वृद्धि सुपीरियर झील के एक चौथाई हिस्से को समुद्र में मिला देने के बराबर है।
नासा की अगुवाई वाला यह विश्लेषण समुद्र स्तर के आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें 30 साल से अधिक समय के उपग्रह अवलोकन शामिल हैं। जिसकी शुरुआत अमरीका-फ्रेंच टॉपेक्स या पोसीडॉन मिशन से हुई है, जिसे 1992 में लॉन्च किया गया था। आंकड़ों से पता चलता है कि 1993 के बाद से वैश्विक औसत समुद्र स्तर कुल मिलाकर लगभग चार इंच बढ़ गया है। इस वृद्धि की दर में भी तेजी आई है, जो 1993 में प्रति वर्ष 0.07 इंच से वर्तमान दर (प्रति वर्ष 0.17 इंच) जो दोगुनी से भी अधिक है।
रिपोर्ट के मुताबिक, तेजी की वर्तमान दर का मतलब है कि 2050 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर में 20 सेंटीमीटर और वृद्धि होने की राह पर हैं, जिससे पिछले 100 वर्षों की तुलना में अगले तीन दशकों में बदलाव की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और बाढ़ की आवृत्ति और प्रभाव में वृद्धि होगी।