न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने आगे कहा, ‘वह (मोदी) हमारे प्रधानमंत्री हैं, किसी और देश के नहीं। वह जनादेश से सत्ता में आए। केवल इसलिए कि आपके राजनीतिक मतभेद हैं, आप इसे चुनौती नहीं दे सकते। अब अपने ही प्रधानमंत्री के नाम से आपको शर्मिंदा क्यों या रही? जब देश के 100 करोड़ लोगों को इससे कोई आपत्ति नहीं तो आपको क्या दिक्कत है? आप अदालत का समय बर्बाद कर रहे हैं। ”
दरअसल, याचिकाकर्ता पीटर म्यालपरम्भिल (Peter Myalparambhil) ने इसी वर्ष अक्टूबर माह में वैक्सीन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तब अपने तर्क में याचिककर्ता ने कहा था कि वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो अनावश्यक है वो भी जब वो उसे खुद इसके लिए भुगतान करना पड़ रहा है। ये उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इस दौरान याचिकाकर्ता ने ये भी तर्क दिया कि केवल भारत में ही वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम की फोटो लगाई जा रही है जबकि अन्य देशों में ऐसा नहीं है। इसपर केरल हाई कोर्ट ने कहा कि आपके इस तर्क के अनुसार तो कल को कोई भी नोट पर से महात्मा गांधी की फोटो हटाने के लिए याचिका देर कर सकता है। ऐसे में इसकी अनुमति कैसे दी जाएगी?
इसपर याचिकाकर्ता ने आरबीआई के नियमों का हवाला दिया और कहा कि वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो किसी नियम या कानूनी प्रावधान के तहत नहीं लगाई गई है। वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो का बचाव किया। वकील ने कहा कि ‘सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो के साथ उनका संदेश भी है। इस संदेश से कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान को लेकर जागरूकता फैलाने में मदद मिलेगी।’
अगस्त में उच्च सदन में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती पवार ने भी कहा था कि टीकाकरण अभियान के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए वैक्सीन प्रमाणपत्रों पर पीएम की फोटो लगाई गई है।
दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि वो मामले को विस्तार से देखने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचेगा और इसके बाद ही निर्णय सुनाएगा।